कविता

तीन मुक्तक

ज़िन्दगी की दौड़ में रास्ते बदल जाते हैं
रास्ते में कुछ अंजान हमसफ़र मिल जाते हैं
देते हैं कुछ प्यार और ममता का झूठा भरोसा
फिर तो बस अपने भी गैर नज़र आते हैं.

ज़िन्दगी में निश्छल प्रेम कर साथ निभाती है माँ
अच्छे बुरे का भेद बताकर राह दिखाती है माँ
कांटों भरी राहों में आँचल अपना बिछाकर
सब दुःख अपने ही सीने पर झेल जाती है माँ ।

थाम तेरा हाथ हम दूर तो निकल जायेंगे
तेरे हर ज़ख्म का मरहम भी बन जायेंगे
गर तुम मरहम बन जाओ मेरे जख्मों का
ताउम्र खुद को तेरे लिए ज़ख्म सहते जायेंगे ।

गुंजन अग्रवाल

नाम- गुंजन अग्रवाल साहित्यिक नाम - "अनहद" शिक्षा- बीएससी, एम.ए.(हिंदी) सचिव - महिला काव्य मंच फरीदाबाद इकाई संपादक - 'कालसाक्षी ' वेबपत्र पोर्टल विशेष - विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं व साझा संकलनों में रचनाएं प्रकाशित ------ विस्तृत हूँ मैं नभ के जैसी, नभ को छूना पर बाकी है। काव्यसाधना की मैं प्यासी, काव्य कलम मेरी साकी है। मैं उड़ेल दूँ भाव सभी अरु, काव्य पियाला छलका जाऊँ। पीते पीते होश न खोना, सत्य अगर मैं दिखला पाऊँ। छ्न्द बहर अरकान सभी ये, रखती हूँ अपने तरकश में। किन्तु नही मैं रह पाती हूँ, सृजन करे कुछ अपने वश में। शब्द साधना कर लेखन में, बात हृदय की कह जाती हूँ। काव्य सहोदर काव्य मित्र है, अतः कवित्त दोहराती हूँ। ...... *अनहद गुंजन*

5 thoughts on “तीन मुक्तक

  • गुंजन अग्रवाल

    dhnywad aa kishor kumar sir ji

  • गुंजन अग्रवाल

    shukriya vijay bhai

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहुत अच्छी कविता गुंजन जी .

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छे मुक्तक !

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