मेरी कल्पना तुम कौन हो …?
तुम …मेरी कल्पना कौन हो ….?
तुम शब्द-रहित
मौन -प्रेम की निश्छल कविता हो
छंदमुक्त देह-रहीत अदृश्य आभा हो
तुम मन्द मन्द प्रवाहित सी सरिता हो
तुम हरी -भरी अमराई की सुन्दरता हो
तुम कोरे पृष्ठ पर एकांत की अनलिखी गीता हो
तुम कोहरे सी ओझल होती हुई सी काया हो
तुम लेकीन आभासित साकार की गरिमा हो
तुम धूप मे टहलते मेघो की शीतल छाया हो
तुम अनुपम सौन्दर्य के
मूक साक्षी की विस्तृत महिमा हो
तुम हर बूंद मे स्नेह – सागर सी रहती हो
तुम बिछुडे हुए प्यार की अनुभूत
सजीव पीड़ा हो
तुम अम्बर से बरसती बरखा हो
तुम सच के जल में
तैरती परछाई सी ,प्रात:की सविता हो
किशोर
अच्छी कविता.
shukriya vijay ji
बहुत अच्छी कविता खोरेंदर जी .
shukriya gurmel singh ji