क्षणिका
सुख और दुःख अति होना जिन्दगी बदरंग करती
सुख और दुःख सगी बहनें साथ नहीं आती
दुःख और सुख जिन्दगी के हर पहलु को रंगती
दुःख की जड़े जितनी गहराई से मन में जमती
सुख के लिए उतनी ही जगह दिल में बनती
दुःख हल चलाना किसानो को नहीं हराती
सुख भोजन का तभी हमें देती धरती
दुःख प्रसव – वेदना का स्त्रियाँ सहती
सुख मातृत्व का पाते वे हँसती इठलाती
सुख और दुःख के दो रूप बता दिए , खूब !
आभार आपका
अच्छी क्षणिका. सुख और दुःख जीवन के दो सत्य हैं. दोनों का संतुलन आवश्यक है. सुख में अहंकार न करना और दुःख में हिम्मत न हारना सुखी जीवन के लिए अनिवार्य हैं.
बहुत सुंदर बात आपने कहा …… बहुत बहुत धन्यवाद आपका