शिव सेना की राजनैतिक मूर्खता
अंततः वही हुआ जिसकी आशंका थी. शिव सेना अब भाजपा से स्थायी तलाक लेकर राजनैतिक आत्महत्या करने की तैयारी कर रही है. राजनैतिक दृष्टि से कई अपरिपक्व फैसलों का यह परिणाम होना ही था.
शिव सेना ने गलतियों की शुरुआत तभी कर दी थी, जब मात्र ३-४ सीटों पर बात चीत अटक जाने पर उसने भाजपा को अपमानित करके अकेले ही चुनाव लड़ने के लिए बाध्य कर दिया था. अगर उसने भाजपा के प्रस्ताव के अनुसार आधी-आधी सीटों पर लड़ने और जिसके विधायक अधिक हों उसका मुख्यमंत्री चुन लेने की बात मान ली होती तो आज वह ठाठ से सत्ता में होती, भले ही मुख्यमंत्री उसका न होता.
उसने दूसरी गलती तब की जब चुनाव प्रचार में भाजपा और मोदी जी को निशाने पर लिया, जबकि भाजपा नेता उसके विरुद्ध कुछ भी बोलने से बच रहे थे. मोदी जी उद्धव ठाकरे के पिताश्री बाल ठाकरे के लिए हमेशा सम्मानजनक शब्दों और वाक्यों का प्रयोग कर रहे थे, लेकिन शिव सेना के मुखपत्र ने मोदी जी के पिताश्री का नाम लेकर जो बेहूदी टिप्पणी की, वह तो मूर्खता की चरमसीमा थी.
अब उप-मुख्यमंत्री पद की जिद करके उसने फिर राजनैतिक अपरिपक्वता का परिचय दिया और केन्द्रीय मंत्रिमंडल में शामिल होने से अपने सांसद को रोककर शिव सेना ने अंतिम रूप से राजनैतिक आत्महत्या की भूमिका बना ली है. अब यह निश्चित है कि महाराष्ट्र की राजनीति में शिव सेना का महत्त्व समाप्त होने वाला है. कोई आश्चर्य न होगा यदि शिव सेना का विधायक दल जल्दी ही दो फाड़ हो जाए.
जय श्री राम ! नमो नमो !!