कविता के जीवन में
कविता के जीवन में
मै ..
जब से आया
अनावृत आकाश सा….. हो
मन लौट आया
मौन के कम्पित जल तरंगो सी
तुम्हारी सिरहनों से –
रोमांचित ओस बूंदों में भी
समाये …
प्रणय के जीवंत क्षणों का
अर्थ समझ पाया
आदिम धडकनों में समाहित
निर्वाण के गान
भूल……
क्षितिज के उस पार …
प्रकृति के मादक – राग
में
बसंत सा गा फाग
अमराई सा गमक –
प्रेम उन्माद
में
मिटा दुःख की रेखाए
मस्तक से
आनंद के रंग सा घुल
जीवन ताल
में
मनुज ..
माया को कैसे छल पाया
मर्म समझ पाया
कविता के जीवन में
मै ..
जब से आया
अनावृत आकाश …
सा …हो
मन लौट आया
*किशोर
बढ़िया कविता, किशोर जी.
अच्छी कविता .