कविता

मेरी आत्मा एक नदी है

मेरी आत्मा एक नदी है

बिखर जाती हैं जब ज्योत्सना
अम्बर से अप्सरा सी
उतर आती हैं मेरी कल्पना
प्रेम स्नेह ममता और करुणा
के जरिये
देती हैं मुझे वह फिर सांत्वना


लोग कहते हैं
सुकुमार ख़याल को
मेरे मन की आत्म प्रवंचना
नीम सा कितना भी कटु हो
सह लिया करता हूँ
मैं वह आलोचना
इस जहां में कोई भी तो ऐसा नहीं हैं
जो रहे संग सदा
इसलिए मैं नींद में
चुरा लिया करता हूँ रोज
एक खूबसूरत सपना
कोहरे सा प्रगट होकर
सीख लिया हैं ख़्वाबों ने
फिर छटना
मेरी आत्मा एक नदी हैं
रोक नहीं पाता हूँ उसका बहना

किशोर कुमार खोरेन्द्र

किशोर कुमार खोरेंद्र

परिचय - किशोर कुमार खोरेन्द्र जन्म तारीख -०७-१०-१९५४ शिक्षा - बी ए व्यवसाय - भारतीय स्टेट बैंक से सेवा निवृत एक अधिकारी रूचि- भ्रमण करना ,दोस्त बनाना , काव्य लेखन उपलब्धियाँ - बालार्क नामक कविता संग्रह का सह संपादन और विभिन्न काव्य संकलन की पुस्तकों में कविताओं को शामिल किया गया है add - t-58 sect- 01 extn awanti vihar RAIPUR ,C.G.

One thought on “मेरी आत्मा एक नदी है

  • विजय कुमार सिंघल

    वाह ! वाह !!

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