कविता

पधारी सर्दी दुबके पाँव!

पधारी सर्दी दुबके पाँव!
सर्द हवा से पसरी ठंडक , आँगन मे सिहरी पद चापें
ठंडा – ठंडा बाहर – भीतर , तन की गर्मी उगले सांसें
कुहरे जैसा धुआँ – धुआँ है , मन का भीगा ठाँव
पधारी सर्दी दुबके पाँव!

सन्नाटे मे डाली – डाली ,पत्ती – पत्ती सिमटी ठहरी ,
कोंपल दुबकी भीतर बैठी , ओस बूँद मे डूबी गहरी ,
कलियाँ घूँघट काढ़ निहारें , ऊषा का घर – गाँव
पधारी सर्दी दुबके पाँव !

निहारे घायल धूप निरीह , करे पाला सब जग से रार,
किसी बिरहिन सी कुढ़ती रात , घटाती दिन का कारोबार
बुने गोरी फागुन के गीत , शीत होती पाहुन की छांव !
पधारी सर्दी दुबके पाँव !

अरविन्द कुमार साहू

सह-संपादक, जय विजय

2 thoughts on “पधारी सर्दी दुबके पाँव!

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    वाह वाह बहुत अच्छी है .

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छी और सामयिक कविता. सर्दी ने दस्तक दे दी है.

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