इतिहास

गीता का ज्ञान या कृष्ण का आत्म प्रचार-गीता जयंती पर विशेष

दो दिसम्बर गीता जयंती मनाई जा रही है ,अखबारों में बाकायदा गीता जयंती मनाने का प्रचार किया जा रहा है।धर्म गुरुओ द्वारा यह कहा जा रहा है की आज के दिन गीता का ज्ञान कृष्ण द्वारा दिया गया था।

गीता में कितना ‘ज्ञान’ है यह तो बाद की बात है पर यदि कोई तर्क और बुद्धि से पढ़े तो पायेगा की गीता केवल कृष्ण का आत्म प्रचार भर है ।

गीता में कुल 700 श्लोक हैं जिसमे की 620 कृष्ण द्वारा कहे गए हैं , इन 620 श्लोको में कृष्ण ‘ मैं’ ,’मेरा’ , ‘मैंने’ ,’ मुझे’ जैसे शब्द ही भरे पड़े हैं ।

यानि 620 श्लोको में 375 श्लोको में किसी न किसी रूप में ‘ मैं’ ही भरा पड़ा है ।

सिर्फ अच्छी को ही अपना कहते हैं –

यूँ तो कृष्ण कहते हैं की मैं ही पुरे ब्रह्माण्ड में हु फिर बड़ी चालाकी से सिर्फ अच्छी चिजोको ही अपना कहते हैं जैसे-

श्लोक 20 से 38 तक में कहते हैं ,मैं विष्णु हूँ, मारीचि हूँ, मैं चेतना हूँ, मैं शंकर हूँ, मैं कुबेर हूँ, मैं सेनापतियो में कार्तिकेय हूँ, मैं हाथियों में एरावत हूँ, मैं मनुष्यों में राजा हूँ, पशुओ में शेर हूँ, पक्षियों में गरुण हूँ, मैं शस्त्र धारियों में राम हूँ, महीनो में अगहन हूँ, मैं मुनियों में व्यास हूँ…… आदि आदि.

है न कमाल की बात !! कृष्ण से पूछा जा सकता है की जब आप यह कह रहें हैं की मैं पूरा ब्रह्माण्ड हूँ फिर यह भी कह रहे हैं की मैं सिर्फ अच्छी चीजो में ही हूँ।
जैसे कोई व्यक्ति यह कहे की ये सारा शहर उसी का है और फिर शहर की सभी अच्छी अच्छी इमारतो को ही कहे की यह मेरी है… अरे भाई!जब सभी अच्छी अच्छी चीजे आप की हैं तो बुरी किसकी हैं?
है न कृष्ण का कमाल का ‘ज्ञान’ ।

स्त्रियों से नफरत क्यों?

कृष्ण सभी कुछ बन जाते हैं पर स्त्री नहीं बनते , वे कहते हैं की ” मैं नारियो में कीर्ति,श्री, वाक्, मेधा, स्मृति, धृति, क्षमा हूँ’ ।
कोई कृष्ण से पूछे की ये गुण हैं की नारियां? और क्या ये गुण सिर्फ नारियों में ही पाए जाते हैं? क्षमा, धृति, मेधा आदि गुण पुरुषो में भी पाए जा सकते हैं न की स्त्रियों में ही।
लगता है की कृष्ण को स्त्रियों में ऐसी कोई नहीं मिली जिसमे वे खुद के होने की बात कह सकते थे , शायद सीता, राधा, रुक्मणि, अहिल्या आदि से वे नफरत करते थे।

तो, मुझे तो गीता में कोई भी’ ज्ञान’ की बात नहीं लगती… क्या आपको लगता है?

संजय कुमार (केशव)

नास्तिक .... क्या यह परिचय काफी नहीं है?

3 thoughts on “गीता का ज्ञान या कृष्ण का आत्म प्रचार-गीता जयंती पर विशेष

  • विजय कुमार सिंघल

    केशव जी, आपकी सारी बातें काल्पनिक और निरर्थक हैं. इनका उत्तर देना भी समय का अपव्यय है.

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    केशव भाई, यह एक धर्म संकट है . धर्म एक ऐसी चीज़ है कि उस पर कोई नुक्ताचीनी सहार ही नहीं सकता , इस लिए इस विषय पर हाँ जी , हाँ जी कह दें तो सब खुश हो जाते हैं लेकिन जैसे ही कोई ऐसी बात कह दी जो ग्रंथों के खिलाफ जाती हो तो भूचाल आ जाएगा . एक छोटी सी बात मैं भी कह दूं , कि अहलिया का शोषण हुआ और वोह भी एक देवते से तो वोह देवता कैहलाने योग्य होगा ?

  • Man Mohan Kumar Arya

    “जाकी रही भव हैसे प्रभु मूरत देखि तिन तैसी।” यह विचार बढ़ कर प्रस्फुटित हूवे। हैं कृष्ण जी ने ईश्वर में अवस्थित हो कर गीता का ज्ञान दिया है। जब योगस्थ अवस्था में मै व ईश्वर प्रायः एक हो जाते है तो ईश्वर के लिए भी मैं शब्द का प्रयोग हुआ करता है। वास्तविकता को जान कर अध्ययन करना उचित होता है। आपसे अनुरोध है कि अपने पूर्वाग्रह को छोड़ कर निष्पक्षता से लेखों व ग्रंथों को पढ़ने की आदत डालें।

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