महकने लगता है…
महकने लगता हैं मेरा घर तेरे आने के बाद
महकने लगती हैं मेरी साँसें तेरे जाने के बाद
अब न कोई गम है ना कोई सितमगर हैं
मेरे इश्क़ को तेरे ज़रिए आज़माने के बाद
चाँद तारों को भी मुझसे रश्क़ होने लगा है
संग तेरे इस मोहब्बत के अफ़साने के बाद
तुझमें जुनून ए उलफत और बढ़ गया हैं
मिलकर मुझ जैसे इक दीवाने के बाद
बुत परस्त तंग गलियों से मैं लौट आया हूँ
तेरे कदमों में रस्म ए सजदा निभाने के बाद
पहले से तुम और ज़्यादा खूबसूरत लगने लगे हो
अपने अक्स का मेरी निगहों में मुआयने के बाद
किशोर कुमार खोरेंद्र
( ,सितमगर=अत्याचारी ,आजमाना=परीक्षा लेना ,रश्क=ईर्ष्या
अफ़साना =कहानी ,जुनून ए उलफत =प्यार का उन्माद , बुत परस्त=
मूर्ति पूजने वाले ,
रस्म ए सजदा =शीश झुकाने की रस्म ,मुआयना =निरीक्षण )
बढ़िया ग़ज़ल !
ग़ज़ल बहुत अच्छी लगी , गाने से लुत्फ और भी बड जाएगा .