मुक्तक
कैसे थके नही धोखा देते
कितने थे लेखा-जोखा देते
क्यूँ शर्म-हया धो के पी गए
नासमझ जमीर में मोखा देते
2
आलता लगाती सांझ तरुणी निकली
झिर्री से झाँकती तारों की टोली निकली
सूर्य सूर्यमुखी अपनी दिशा बदलते रहे
रात रानी नशीली खिलखिलाती निकली
कैसे थके नही धोखा देते
कितने थे लेखा-जोखा देते
क्यूँ शर्म-हया धो के पी गए
नासमझ जमीर में मोखा देते
2
आलता लगाती सांझ तरुणी निकली
झिर्री से झाँकती तारों की टोली निकली
सूर्य सूर्यमुखी अपनी दिशा बदलते रहे
रात रानी नशीली खिलखिलाती निकली
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waah waah
वाह वाह !
बहुत बहुत धन्यवाद आपका
बहुत अच्छा लगा पड़ कर .
आभारी हूँ …. शुभ संध्या