फिर बही हालात
फिर बही हालात
पहले भी निशुल्क नेत्र शिविरों में
मजबूर और असहाय लोग अपनी आँख की रौशनी खोते थे
आज भी पंजाब में लोग रोशनी खो रहे हैं
पहले भी नसबंदी कैंप में लोग
अक्सर जान से खेलते थे
आज भी छत्तीसगढ़ में जान से खेल रहे हैं
पहले भी नक्सली लोग
निर्दोष लोगो की जान लेते थे
आज भी ले रहे हैं
बिदेशी फ़ौज़ पहले भी हमारी सीमा में बेबजह
घूमने आ जाते थे
आज भी आ जा रहे हैं
पहले भी कालाधन लेन की बात हो रही थी
आज भी बातें ही हो रही हैं
पहले भी बिपक्ष किसी भी बजह से हंगामा करके
सदन की कार्यबाही नहीं चलने देते थे
आज भी बही हो रहा है
बक्त बदला ,निजाम बदला
लेकिन हालत अभी नहीं बदले हैं
मदन मोहन सक्सेना
वास्तविकता को व्यक्त करती अच्छी कविता.