कविता

मित्रों का सहारा

मैंने अपने कुछ मित्रों के नाम का सहारा लेकर उन्हें इस कविता के माध्यम से दिल से याद किया है।।।
लेकिन जिन मित्रों का नाम नहीं आया उनका भी उतना ही आदर है, उनसे भी उतना ही प्यार है।।

कल्पना की थी जैसे प्रिय मित्रों की जीवन में ,
अब तो मुझे जीवन में ऐसे ही मित्र मिले हैं,
मेरे मन के शांत सरोवर में भी अब,
“कँवल” के कोमल पुष्प खिलें हैं,
दिनेश जब बिखेरता है अपनी सुनहरी किरणे ,
मन हर्षित कर ज़िन्दगी का पल पल सजा देता है,
पूनम की रात में रजनीश भी तारों की अल्का के संग,
नवीन आशा के दीप दिल में जला देता है,
”राम-किशन” से पूज्य मेरे ,
देव तुल्य मित्रों की शुभ कामनाओ से,
मेरी यह नाचीज़ कलम भी “चेतन” हो जाती है,
रूप ले लेती है “कविता” का और किरण “किरण” सी बिखर जाती है,
सभी मित्रों ने इतना मेरे जीवन में प्रेम दिया है,
अजय किया मन मेरा, पूर्ण विश्वास अंकित किया है,
सुप्रीति जगाई है मन में ,”मधु”मय मेरा जीवन किया है,
जो भी माँगा था प्रभु से मैंने, दिल खोल मित्रों ने दिया है,
मित्रों ने ही दिलाई हर क्षेत्र में विजय, मित्रों ने फैलाई कीर्ति,
इस सुदामा को दी है मित्रों ने श्रीकृष्ण बन कर अपार प्रीती,
राधा संग जैसे श्रीगोपाल ,गिरिजा संग जैसे महादेव ,
कमला संग जैसे कमलेश, रमा संग जैसे विराजित रमेश,
ऐसा ही मित्रों ने साथ दिया ,जीवन मेरा यशवान किया है,
मुझे देकर इतने सखा सरीखे, प्रभु ने जैसे वरदान दिया है।
——-जय प्रकाश भाटिया

जय प्रकाश भाटिया

जय प्रकाश भाटिया जन्म दिन --१४/२/१९४९, टेक्सटाइल इंजीनियर , प्राइवेट कम्पनी में जनरल मेनेजर मो. 9855022670, 9855047845

One thought on “मित्रों का सहारा

  • विजय कुमार सिंघल

    कविता के माध्यम से मित्रों को याद करना सराहनीय है.

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