पूँजीवादी शिक्षा
ज्ञान की खोज में लगे रहनेवाले तथा ज्ञान पिपासू हर किसी की संतुष्टि शिक्षा-प्राप्ति में ही है। शिक्षा; स्कूल, विश्वविद्यालय आदि विशेष संस्थानों पर केन्द्रित होने पर भी वह जन्म से लेकर मृत्यु तक आदमी के अंतःस्थल में निवास करनेवाली एक तीव्र इच्छा है। आदमी लेख-आलेखों,किताबों तथा विद्वानों के संपर्क में रहकर एवं नये-नये आयामों और नाना प्रयोगों में तल्लीन रहकर दिन-रात अज्ञान की सीमाओं को तोड़ देने का प्रयास कर रहे हैं।
प्राचीन काल के विद्वानों ने अपनी मन की संतुष्टि के उद्देश्य में कुछ-न-कुछ अवश्य सीख लिये। मन की संतुष्टि के साथ-साथ ज्ञान प्राप्त कर संसार के नाना विषयों के संबंध में कोई अनेक मत प्रकट करने लगा तो कोई उन मतों के विरोध में अन्य मत खड़ा करने लगा। पुराने ज़माने से आज तक समस्या, उसका हल तथा विविध अर्थ विश्लेषणों पर शिक्षा का वहन अविच्छिन्न रूप से हुआ।
अद्यतन युग के शिक्षा-ग्रहण के उदेश्य तथा अतीत के शिक्षा-ग्रहण के उद्देश्य में आसमान-ज़मीन का अंतर है। वास्तव में नये शिक्षा क्रम के भीतर द्वितीयक शिक्षा के उपरांत उच्च शिक्षा (विश्वविद्यालय की पढ़ाई) के श्री गणेश करने का लक्ष्य क्या होता है?अतीत की तुलना में वर्तमान युग की शिक्षा-प्राप्ति का उद्देश्य मन की संतुष्टि प्राप्त करना या ज्ञान-पिपासा को बुझाना नहीं होता। शिक्षा-ग्रहण के माध्यम से ‘स्नातक’शब्द को अपनी साथ जोड़ देते हुए यश का मज़ा लेना तथा किसी ऑफिस के ‘ठंडे कैबिन’में कैद होकर एक लाख या डेढ़ लाख की वेतन की नौकरी को अपना सारा जीवन सौंप देना अद्यतन शिक्षा-प्राप्ति का उद्देश्य होता है। शिक्षा का असली उद्देश्य और स्वभाव यह नहीं हो सकता। ऐसी दशा में पीढ़ी-दर-पीढ़ी शिक्षा का वहन व उसकी तरक्की नहीं, उसका सड़ जाना ही अंतिम फल हो सकता है।
यह बड़ी अफसोस की बात है कि परम पूँजीवादी आर्थिक-क्रम के भीतर शिक्षा, मात्र उपभोगी वस्तु बन गयी है, जो पूँजीवादी आवश्यकताओं की पूर्ति का एक साधन है। शिक्षा के द्वारा धनी व्यवसायक बनने के अलावा उससे परे की शैक्षिक लक्ष्यों तक पहुँचने के लिए आज शिक्षा का प्रयोग नहीं किया जाता। व्यक्ति में ज्ञान हो या नहीं परीक्षाओं से उत्तीर्ण होना तथा उच्च व्यवसायों के उचित बनना ही उसका एक मात्र लक्ष्य होता है। अब शिक्षा एक कागज़ पर लिखे अक्षरों की दो-चार पंक्तियों के लिए सीमित रह गयी है। इस पूँजीवादी भावना को छात्रों के मन से उखाड़ फेंकना ही समयोचित होगा।
आपकी टिप्पणी से लगभग पूरी तरह सहमत हूँ. यथाकथित आधुनिक शिक्षा का उद्देश्य अब केवल धन और नाम कमाना रह गया है. ज्ञान का प्रसार अब कहीं बहुत पीछे छूट गया है.
जी हाँ, सिंघल जी, वर्तमान में ज्ञान के प्रसार का उद्देश्य बादल देने की ओर ध्यान देने की बड़ी आवश्यकता है। आपके इस प्रोत्साहन के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।
सुन्दर प्रस्तुति बहुत ही अच्छा लिखा आपने .बहुत ही सुन्दर रचना.बहुत बधाई आपको .
आपको बहुत-बहुत धन्यवाद।
लेख पठनीय एवं अच्छा है। शिक्षा का उद्देश्य स्वंयम को जानने के साथ संसार और इसके रचयिता को जानना है और अर्जित ज्ञान से अपने कर्तव्यों का निर्धारण करना है। ईश्वर के प्रति हमारा कर्तव्य उपासना सिद्ध होता है. स्वयं के प्रति हमारा कर्तव्य अविद्या का नाश तथा विद्या की वृद्धि करना सिद्ध होता है. इसके साथ परोपकार, सेवा, सामजिक कर्तव्यों को जानना वा उसका पालन करना अभीष्ट है। शिक्षा वह है जो हमें धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष की प्राप्ति कराती है। सुन्दर लेख के लिए धन्यवाद।
जी हाँ, आजकल की शिक्षा केवल अर्थ की प्राप्ति तक सीमित रह गयी है। आपकी टिप्पणी से मैं सहमत हूँ। आपको बहुत-बहुत धन्यवाद।