इतिहास

गैर हिन्दुओ का पुन: हिन्दू धर्म में वापसी – एक छलावा

हिन्दू दल उत्साहित हैं की उनके प्रयासों से कुछ गैर हिन्दू परिवार फिर से धर्म पतिवर्तन कर के हिन्दू बन गए। यह अच्छी बात है , संविधान ने सभी को यह अधिकार देता है की भारत का कोई भी नागरिक अपनी इच्छा अनुसार धर्म चुन सकता है।

पर चुकी हिन्दू धर्म वर्ण/ जाति आधारित है इसके बिना हिन्दू धर्म की कल्पना करना ही बेकार है तो उन नव धर्म परिवर्तित लोगो के सम्मुख यह विकट प्रश्न है की वह अब किस वर्ण और जाति में जायेंगे? इस समस्या का समाधान हिन्दू धर्म के लिए चुनौती है।

इसके अलावा हिन्दू संगठनो को उन हिन्दुओ के बारे में सोचना चाहिए जो अभी हिन्दू धर्म में तो हैं पर उन्हें हिन्दू नहीं समझा जाता है,उनकी हालत अब भी दयनीय, बनी हुई है। समाज द्वारा उन्हें बहिष्कृत समझा जाता है, मंदिरों में उनके प्रवेश पर प्रतिबंध है।

यह बात भी गौर करने लायक है की जब हिन्दू धर्म के शीर्ष पद पर आसीन धर्म गुरु यह कहते हैं की दलित को मंदिरों में प्रवेश करने की इजाजत नहीं है तो ये हिन्दू संगठन उन धर्म गुरुओ के खिलाफ बोलने की हिम्मत तक नहीं कर पाते हैं, यह उनका दोहरा चरित्र है।

खैर, अब बात हिन्दू संगठनो द्वारा गैर हिन्दुओ को पुन: हिन्दू बनाने की । हिन्दू धर्म के अनुसार यदि कोई पुन: हिन्दू बनता है तो उसे कठिन प्राश्चित करना पड़ता है ,हिन्दू धर्म शास्त्र ऐसी ही आज्ञा देते हैं बिना प्राश्चित के कोई पुन: हिन्दू नहीं बन सकता।
ये प्राश्चित निम्न लिखित हैं-

1- गृहीतो यो बलान म्लेछे…….शुद्धिविर्धीयाते( देवल स्मृति, श्लोक 53)

अर्थात- जो व्यक्ति म्लेछे द्वारा बल पूर्वक रखा गया हो और 5-7 वर्षो तक उनके पास रहा हो , लेकिन वह वर्जित व्यवहार, खान पान आदि से उनसे दूर रहा हो वह शुद्द हो सकता है । उसे प्राजपत्य व्रत करना पड़ता है ।

2- प्रजापत्यद्वन्य तस्य…… कृच्छ मेव सहोषिते( श्लोक 54)

अर्थात- जो व्यक्ति बिना विवश किये अथवा सहमती से मलेच्छो के साथ रहा हो पर खान-पान से और विचारो उनसे अलग रहा हो वह कृच्छ व्रत करे।
विधान- प्रथम तीन दिनों में दिन में एक बार भोजन करना, अगले तीन दिनों में केवल रात्रि को भोजन करना, अगले तीन दिनों में बिना मांगे खाना अर्थात मिल जाये तो खाना नहीं तो भूखे ही रहना।

3- म्लेच्छे: …………. चान्द्रायण द्वयम ( श्लोक 54)

अर्थात- यदि कोई हिन्दू म्लेछो के साथ 20 वर्ष तक रहा हो तो वो दो चंद्र्यायण व्रत करे ( यह व्रत 30 दिन का होता है)
विधान- मास के शुक्ल पक्ष के प्रथम दिन एक ग्रास भोजन किया जाता है इसके बाद कृष्ण पक्ष के प्रथम दिन 14 ग्रास , दुसरे दिन 13 ,और 15 वें दिन पूर्ण उपवास।
इसके साथ ही व्यक्ति की बगलों, गुप्तेंद्रियो , सर, मूंछो, दाढ़ी, भोहे तथा शारीर के अन्य रोओ को काट दिया जाता है । उसके पैरो और हाथो के नखो को काफी बीच तक काट दिया जाए , तभी वह व्यक्ति शुद्ध होगा।

इसके अलावा अलबेरुनी भी अपनी भारत यात्रा के दौरान लिखी गई पुस्तक अलबेरुनी का भारत, प्रथम संस्करण के पेज 208 में इसकी पुष्टि करता है ।
वह लिखता है ” मैंने कई बार सुना है की जब मुस्लिम देशो से हिन्दू दास भाग के या रिहा कर के वापस अपने देश और धर्म में जाते , तब हिन्दू उन्हें प्राश्चित के रूप में उपवास करने का आदेश देते हैं, फिर वे उन्हें गाय के गोबर , मूत्र, और दूध में कई दिनों की नितांत संख्या तक दबाये रखते हैं यंहा तक की उन पर खमीर उठ आता है । तब वे उन्हें खिंच कर उस मैल से बाहर निकलते हैं और वैसा ही मैल खाने को देते हैं”

अत: आज जो हिन्दू संगठन केवल हवन करवाके ‘ शुद्धि’ किये दे रहें हैं वह पूरी तरह से गलत है , यह केवल मात्र संख्या बढ़ाने के लिए किया जा रहा है वास्तविक हिन्दू धर्म के अनुसार उनको हिन्दू धर्म में नहीं परिवर्तित किया जा रहा है।

संजय कुमार (केशव)

नास्तिक .... क्या यह परिचय काफी नहीं है?

2 thoughts on “गैर हिन्दुओ का पुन: हिन्दू धर्म में वापसी – एक छलावा

  • विजय कुमार सिंघल

    आपने जो सन्दर्भ दिए हैं किसी स्मृति के उनको कोई नहीं मानता. उनको प्रचारित करना बौद्धिक बेईमानी है. अगर कुछ हिन्दुस्तानी मुसलमान हिन्दू धर्म में वापस आये हैं, तो इसका स्वागत ही करना चाहिए, क्योंकि यह उनके पूर्वजों का मूल धर्म है.

  • Man Mohan Kumar Arya

    संसार के सभी मनुष्य ईश्वर की संताने है। ईश्वर को मानने व पूजा करने का सबको समान अधिकार है। हम देश भर के मंदिरों में गए है। हमसे कहीं कृषि ने नहीं पूछा कि हमारा धर्म या जाति क्या है? यदि कहीं कोई ऐसा करता है तो यह क़ानून के विरुद्ध होगा। वेद में ऐसा कोई विधान नहीं हैं। शुद्धि विषयक जो प्रमाण है वह अमान्य एवं अप्रासंगिक हैं। महर्षि दयानंद ने देहरादून में सं १८७९ के आस पास पहली सुधि की थी। वह शास्त्रो के सबसे बड़े पंडित थे। वह वेद और वेदानुकूल ग्रंथों को ही प्रमाणित मानते थे. जब हिन्दू का धर्मांतरण होता है तो उसे परावर्तित मत में कोई प्रायश्चित नहीं करना होता तो हिन्दू बनने या अपने मूल धर्म में आने के लिए भी किसी प्रायश्चित की आवश्यकता नहीं है. धर्मान्तरण का उदेश्य सत्य वा श्रेष्ठ को स्वीकार करना होना चाहिए जो मनुष्य को जीवन का लक्ष्य प्राप्त करा सके।

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