गीतिका/ग़ज़ल

मुझे जंगल के…..

 

मुझे जंगल के दुर्गम रास्तों की आवारगी पसंद है
मर मिटने को आतुर परवाने की दीवानगी पसंद है

वियोग में तेरे मैं तो दूर बहुत दूर निकल आया हूँ
मुझे महा सागर के साहिल की वीरानगी पसंद है

वो तो सदा लहरों सी आकर चुपचाप चली जाती है
राहनुमा की मुझे यह निश्छल अदायगी पसंद है

नदी प्यासी सागर प्यासा ,लहर प्यासी तट प्यासा
जिस्म ए रूह की यह सोहबत ए तिश्नगी पसंद है

तेरे लिए दुआ माँगूँ , सजदा करूँ , तेरी इबादत करूँ
तुझसे बिना रूबरू मिले रगबत की जिंदगी पसंद है

किशोर कुमार खोरेंद्र

किशोर कुमार खोरेंद्र

परिचय - किशोर कुमार खोरेन्द्र जन्म तारीख -०७-१०-१९५४ शिक्षा - बी ए व्यवसाय - भारतीय स्टेट बैंक से सेवा निवृत एक अधिकारी रूचि- भ्रमण करना ,दोस्त बनाना , काव्य लेखन उपलब्धियाँ - बालार्क नामक कविता संग्रह का सह संपादन और विभिन्न काव्य संकलन की पुस्तकों में कविताओं को शामिल किया गया है add - t-58 sect- 01 extn awanti vihar RAIPUR ,C.G.

One thought on “मुझे जंगल के…..

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी ग़ज़ल !

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