अब मलाला को मलाल नहीं, सत्यार्थी जैसा पिता जो मिला
हालाँकि पिछले साल ही मलाला युसुफजई को नोबेल पुरस्कार के लिए नामांकन सूची में नाम भेजा गया था, पर किसी कारण वश वह पिछले साल यह पुरस्कार नही पा सकी थी. पिछले साल शांति का नोबल पुरस्कार रासायनिक हथियारों के खिलाफ लड़ने वाली OPCW नाम की संस्था को पुरस्कार दिया गया था.
पर इस साल मलाला ने नोबल पुरस्कार की जंग भी एक भारतीय श्री कैलाश सत्यार्थी (जिन्होने उसे सबके सामने बेटी कहा) धर्मपिता के साथ जीत ली है. जहाँ बाल अधिकारों की लड़ाई लड़ने वाले, बंधुआ बाल मजदूरों को मुक्ति दिलाने वाले श्री कैलाश सत्यार्थी ने कहा – “जिन बच्चों को मैंने बचाया है उसकी मुस्कानों में ईश्वर के दर्शन हुए हैं. मैं उनकी खामोश जुबान का प्रतिनिधित्व करता हूँ. वैश्विक प्रगति में दुनिया का एक भी व्यक्ति पीछे नहीं छूटना चाहिए.”
वहीं बच्चियों की शिक्षा के अधिकार के लिए लड़ने वाली मलाला युसुफजई ने कहा – हाथ में बन्दूक देना आसान है, लेकिन किताब देना मुश्किल है. मैं ६.६ करोड़ लड़कियों की आवाज हूँ.
इस नोबल पुरस्कार में ११ लाख डॉलर यानी करीब ६ करोड़ ८३ लाख रुपये मिले हैं, जिन्हें दोनों में बराबर बराबर बाँट दिया जायेगा.
अपने एन. जी. ओ. बचपन बचाओ आन्दोलन के जरिये ६० वषीय श्री कैलाश सत्यार्थी ने अब तक अस्सी हजार बच्चों को आजाद कराकर नई जिन्दगी दी है.
मलाला ने अपने संबोधन में कहा कि जब शांति पुरस्कार दोनों देशों (भारत और पाकिस्तान) में साझा लिए जा सकते हैं, तो क्यों नहीं दोनों देश के प्रधान मंत्री एक दूसरे के साथ बात-चीत कर दोनों देशों के बीच शान्ति की स्थापना कर सकते हैं. वास्तव में या अन्तराष्ट्रीय स्तर का सबसे बड़ा पुरस्कार बहुत कुछ कहता है, अगर हम समझने को तैयार हों.
नोबल पुरस्कार पानेवालों की सूची में सबसे कम उम्र वाली युवा और पाकिस्तानी मुसलमान लड़की मलाला और दूसरे ६० वर्षीय बुजर्ग भारतीय हिन्दू … दोनों की सोच गजब की मिलती जुलती है. दोनों बच्चों की शिक्षा और उत्थान के लिए कृतसंकल्प हैं. वैसे इन दोनों को अनेक प्रकार के पुरस्कारों से नवाजा गया है …पर मेरा मानना है कि ये दोनों पुरस्कार के लिए काम नहीं करते बल्कि इनके जीवन का मकसद एक चुनौती है, जिसके लिए ये दोनों संघर्षरत हैं.
एक लड़की मलाला जो लड़कियों की शिक्षा के लिए प्रेरित करने वाली १५ साल की उम्र में तालिबानियों के गोली की शिकार हुई और उसने मौत की जंग जीत ली. वहीं कैलाश सत्यार्थी बचपन से ही गरीब बच्चों के प्रति सहानुभूति रखते थे. वर्ष १९९० में ही उन्होंने बचपन बचाओ आन्दोलन की शुरुआत की. वे लोहिया आन्दोलन से भी जुड़े थे और आर्य समाज की समस्याओं को केंद्र में रखकर ‘सत्यार्थी’ नामक किताब लिखी. किताब के शीर्षक से ही उनका नाम कैलाश शर्मा से कैलाश सत्यार्थी हो गया. विदिशा, मध्य प्रदेश में जन्मे कैलाश चर्चा में तब आए जब इन्होने १९९३ में कालीन उद्योग में लगे बाल मजदूरों की आजादी और शिक्षा के लिए बिहार से दिल्ली तक २००० किलोमीटर की पदयात्रा की. वर्ष १९९८ में ८० हजार किलोमीटर की पदयात्रा निकाली जो १०३ देशों में गयी. इया यात्रा से उन्हें अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति मिली.
सत्यार्थी के मुक्ति आश्रम और बाल श्रम आश्रम में जहाँ बच्चों को शिक्षा दी जा रही है, वही बाल मित्र ग्राम और मुक्ति कारवां जैसे उनके प्रयोग पूरी दुनिया में सराहे जा रहे हैं. वे अपने चार भाइयों में सबसे छोटे हैं. बाबूलाल आर्य उनके गुरु थे.
मलाला की ईच्छा राजनीति में आने की है और वह बेनजीर भुट्टो की तरह पकिस्तान की प्रधान मंत्री बनकर देश की सेवा करना चाहती है. जबकि कैलाश सत्यार्थी अपने बचपन बचाओ आन्दोलन के तहत हर बच्चों को उसका बचपन वापस दिलाना चाहते हैं.
इन दोनों शांति दूतों को अमेरिकी सीनेट ने भी सम्मान का प्रस्ताव पेश किया है.
अपने देश और मध्य प्रदेश के लिए यह दुर्भाग्य की बात है कि आज दुनिया भर में मशहूर कैलाश सत्यार्थी को उनके ही प्रदेश के विधायक और राजनीतिक नहीं जानते उनके अनुसार कैलाश नामका व्यक्ति सिर्फ कैलाश विजय वर्गीय (मध्य प्रदेश सरकार में कैबिनेट स्तर के मंत्री और भाजपा नेता) हैं और नोबल पुरस्कार के हकदार भी …. हमारे माननीय जो जनता के प्रतिनिधि हैं, सामान्य ज्ञान और ताजा ख़बरों से कितने अनभिग्य हैं.
दूसरी खबर जो कि मोदी जी और बाबा रामदेव साथ साथ ही पूरे देश के लिए गौरवान्वित करनेवाली है, वह है अन्तर्राष्ट्रीय रूप से २१ जून को ‘योग दिवश’ के रूप में घोषणा करना है. प्रधान मंत्री ने यूनाइटेड स्टेट में ‘योग दिवश’ को अन्तर्राष्ट्रीय रूप में मनाने का प्रस्ताव पेश किया था.
पर, अपने देश में ये क्या हो रहा है. जहाँ प्रधान मंत्री श्री मोदी रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन के साथ न्यूक्लियर एनर्जी के साथ साथ सामरिक क्षेत्रों में भी आपसी समझौते पर हस्ताक्षर कर रहे थे, वहीं उनके अनुयायी(साक्षी महाराज आदि) कभी कभी विवादास्पद बयान देकर उसे वापस भी लेते हैं और संसद के कीमती समय को अवांछित मुद्दे पर बर्बाद करते हैं. दूसरा मुद्दा धर्मान्तरण और घर वापसी का है. जहाँ भाजपा को सहयोग करनेवाली संस्थाएं इसे बृहद स्तर पर करने जा रही है. बंगला देश से आए नागरिकों को हिन्दू बनाया जाना – पता नहीं यह हिन्दू धर्म को शिखर पर ले जायेगा या….?
एक रहस्य पर से पर्दा श्री मुलायम सिंह यादव ने हटाया. उनके अनुसार जिस घर वापसी की चर्चा टी वी, अख़बारों में और इस संसद में हो रही है, उसकी भनक तक उनको नहीं है, जबकि वे उसी आगरा(उत्तर प्रदेश) के मुखिया के पिता और जमीन जुड़े हुए नेता कहे जाते हैं… अब क्या संसद इन अखबारों के आधार पर चलेगी? …. नहीं मुलायम सिंह जी, संसद मीडिया के आधार पर नहीं चलती, बल्कि संसद के आधार पर मीडिया चलती है…. और यही मीडिया सरकारें और सांसद बनाती और मिटाती भी है. अभी भी आपने मीडिया की आवाज को नहीं सुना? कुछ दिन और इंतज़ार कर लीजिये, आप भी भारत के भावी प्रधान मंत्री का सपना कई सालों से देखते चले आ रहे हैं….मीडिया की जरूरत तो पड़ेगी ही, आपको भी….
आपके राज्य में कानून ब्यवस्था भी ठीक ठाक है, वहां पुलिस कर्मी भी गुंडों द्वारा नहीं मारे जा रहे हैं. …. और उबर टैक्सी में दुष्कर्म के बाद इंदिरा गाँधी अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर छेडछाड की जो घटना हुई वह भी कोई बड़ी बात नहीं है … हो जाती है गलती …अनजाने में या शराब के नशे में…. यही न कहेंगे आपलोग? …..और अब बंगलोर से गिरफ्तार ISIS को सूचनाएं पहुचने वाला मेहदी मसरूर बिस्वास …..???
सारा देश कुछ अच्छे की उम्मीद कर रहा है, पर देश अपनी रफ़्तार से ही चल रहा है अर्थ-ब्यवस्था से लेकर स्वच्छता और स्वास्थ्य तक. प्रधान मंत्री जी और सभी सम्मानित जन प्रतिनिधि अपने अन्दर झांकें और देश को नई दिशा दें …इसी उम्मीद के साथ जयहिंद!
– जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर
चिंतनपरक सामयिक लेख
हार्दिक आभार आदरणीया ज्योत्सना शर्मा जी!
सराहनीय लेख।
धन्यवाद आदरणीय मनमोहन कुमार आर्य जी!
बहुत अच्छा लेख.
हार्दिक आभार आदरणीय श्री विजय सिंघल जी!
लेख अच्छा लगा .
हार्दिक आभार आदरणीय गुरमेल सिंह जी!