कविता
जिस तरह
मायूस हो जाती मोरनी
अपने पैरों को देखकर ।
उसी तरह
उदास हो जाता मन
जब कोई पूछता ?
कब तलक बाप के होटल में खाओगे
बेरोजगार पुत्र से ।
बेचैन हो जाता मन
नसीहत-दर-नसीहत से
उठने लगते कई विचार
मन में एक साथ !
कौन नहीं चाहता
हो अपने पैरों पर खड़े
बने बूढ़े मां-बाप के कंधों का सहारा
जब हो जायें बड़े ।
पिता जी !
होने नहीं दूंगा मायूस आपको
बनूंगा आपके कंधों का सहारा
आप है हमारे प्रेरणा पुंज ।
मैं कर्तव्य पथ पर डटा हूं
कोशिशों में जुटा हूं ।
हर अरमान, हर खुशियाँ
यूं ही त्याग रहा हूं
आपके सपनों की खातिर
रात-रात भर जाग रहा हूं ।
धरातल से जुडी कविता. यह हर बेरोजगार व्यक्ति की कहानी है.