कविता -लिखना …
कविता लिखते -लिखते पता नही चला …
कब शाम हो गयी
कब धुप मुझे छोड़कर चली गयी ..
.भूख नही लगी ..
न पानी पिया न ही गुस्सा आया ..
न किसी की याद आई …
घडी के कांटे की तरह मेरा कुत्ता मेरे आस-पास घूमता रहा …
न आंगन में पोधे से झरे पत्तो या फूल की पंखुरियों को मैंने उठाने की कोशिश की ..
अपनी कमीज ,अपनी देह ,,..से अपरचित ..होता गया ..
लिखता गया ..या चलता गया अपने अंदर के एक और भीतर में …
जहां पर शब्द क्षण क्षण अंकुरित हो रहे थे ..
शब्द मुझमे भरते जा रहे थे ..
और मैं …..
वर्षा की बूंदों की तरह ….
शब्दों के जलाशय मे डूबता जा रहा था …
किशोर कुमार खोरेंद्र
आपके शब्द समन्वय की तुलना नहीं …शब्द मुझमे भरते जा रहे थे ..
और मैं …..
वर्षा की बूंदों की तरह ….
शब्दों के जलाशय मे डूबता जा रहा था …सादर
वाह ! वाह !!