साथ तुम्हारा
गुजरा कल
उदासी भरा था
तय कर रही थी
सुनी रहें
बिना किसी
अनुभूतियों के—-
तुम
कब शामिल
हो गए
मेरे वजूद में
खामोशी से
मुझे पता ही
नही चला
रज-कण पर
फैल जाती है
जैसे लहरें
आहिस्ते–आहिस्ते–
मेरी ठंडी हथेलियों पे
जब रख दिया
तुमने अपना हाथ
दौड़ने लगी
हसरतें मेरी
रगों में–
अनचाहे सपने
उतर आए
आँखों में–
मालूम नहीं
वो सिर्फ
एक सुकून भरा
एहसास था
या प्रेम
मैं चाह्ने लगी
साथ तुम्हारा
पल- पल
बना रहे
अंत तक जीवन के
रह्ते है
साथ जैसे
अर्थ—शब्द में
खुशबू — फूल में–
पर तुम
लौट गए
अपनी मंजिल
के जानिब–
और मैं
फिर से
मूर्तिवत
ताक रही हूं
सूनी राहें
इंतजार में तुम्हारे
उस विश्वास के साथ
जिस विश्वास से
टिका रहता है
कोई फूल
डाली से
कि तुम वापस
आओगे जरूर
फिर से !!
****भावना सिन्हा****
अच्छी कविता !
v v nice