उपन्यास अंश

उपन्यास : देवल देवी (कड़ी २)

नम्र निवेदन

इतिहास का एक कुशल विद्यार्थी वही है जो इतिहास का सिर्फ अध्ययन न करे अपितु उसका अंवेषण करें। वह उन तथ्यों का गहराई से विवेचन करे जिसे तत्कालीन और समकालीन इतिहासकारों ने पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर दबा दिया। इतिहास के सूक्ष्म निरीक्षण करने से हमें मध्यकालीन भारत की आकाश गंगा में दो नक्षत्र धूमकेतु की तरह चमकते हुए मिलते हैं। ऐसे धूमकेतु जिनकी चमक को अधिकतर इतिहासकारों ने निंदा करके फीका किया या फिर इतिहास के पन्नों से उनके उज्जवल कार्य को पोछ दिया।

इतिहासकार सरदेसाई और श्रीयुत मुंशी ने इन दो धूमकेतु के बारे में इतिकृत्त प्रस्तुत किया और इसी ने मेरी जिज्ञासा को बढ़ाया। और मैंने इनकी चमक को उपन्यास के रूप में पृष्ठों पर फैलाने का निर्णय लिया। इन दोनों महान उज्ज्वल नक्षत्रों में पहली है गुजरात की राजबाला देवलदेवी और दूसरा महान् नसिरूद्दीन खुशरव शाह। देवलदेवी है प्रस्तुत उपन्यास की नायिका। इन दोनों ने दिल्ली की मुस्लिम सत्ता को 1192 में पृथ्वीराज की पराजय के साथ स्थापित हुई थी उसे 4 अप्रैल 1320 को लगभग 128 वर्ष बाद उखाड़ दिया और हिंदू साम्राज्य की पुर्नस्थापना की।

इतिहास लिखने से कहीं अधिक दुष्कर है ऐतिहासिक उपन्यास लिखना। ऐतिहासिक उपन्यास में इतिहास की घटनाओं के साथ कल्पनाओं का समायोजन करते हुए प्रस्तुत करना निश्चय ही एक कठिन कार्य है। प्रस्तुत उपन्यास ‘देवलदेवी’ में मैंने कल्पना और ऐतिहासिक घटनाओं का समायोजन करने का सूक्ष्म प्रयास किया है। उपन्यास का कथानक ऐतिहासिक है और इसके नायक एवं नायिका द्वारा किए गए कार्यों की अंतिम परिणित पूर्णतया ऐतिहासिक है। नायिका देवलदेवी के जीवन की प्रारंभिक घटनाएँ जैसे आन्हिलवाड़ विध्वंस के पश्चात् पिता के साथ भागना, यादव युवराज शंकर से परिणय रचाना, उसकी रक्षा करते हुए युवराज भीम का वीरगति का प्राप्त होना, खिज्र खाँ और मुबारक खाँ से जबरन देह संबंध रखना पूर्णतया सत्य ऐतिहासिक घटनाएँ हैं। देवलदेवी की ही भाँति नायक नसिरुद्दीन खुशरव शाह के साथ घटित घटनाएँ जैसे आन्हिलवाड़ विध्वंस के समय उसका अपहरण करना, जबरन धर्म परिवर्तन करना, गुलाम बनाना आदि ऐतिहासिक रूप से सत्य है।

अलाउद्दीन का वजीर नुसरत खाँ रणथम्भौर आक्रमण के समय मारा गया था, यह सत्य है। उपन्यास के कथानक में नुसरत को घायल अवस्था में हसन (खुशरव शाह) के द्वारा मारा जाना मेरी कल्पना की उपज है। इसी प्रकार अलाउद्दीन के शहजादों को पहले अंधा करना और कुछ समय उपरांत उनकी हत्या करना ऐतिहासिक सत्य है। जिसमें मैंने कल्पना का कुछ समावेश अवश्य किया है। मलिक काफूर भी ऐतिहासिक प्रमाणित है, उपन्यास में वर्णित उसके कार्य एवं विजय इसी पर आधारित है। इसी प्रकार देवगिरी की राजकुमारी छिताई आन्हिलवाड़ की महारानी कमलावती का वर्णन भी प्रमाणित है। राजकुमारी छिताई के द्वारा सुल्तान अलाउद्दीन का प्रेम प्रस्ताव ठुकराना और सुल्तान से उसके पति द्वारा उनकी रक्षा करना भी इतिहास के साक्ष्यों में उपलब्ध है। अलाउद्दीन की शहजादी और राजकुमार विक्रम की प्रेम कहानी और यत्रा-तत्रा किवंदती में प्रचलित है। गुलबेहिश्त भी ऐतिहासिक पात्र है। राजकुमारी चंद्रिमा काल्पनिक पात्र है। इनकी उपज तत्कालीन सल्तनत के शाही हरम में विभिन्न राज्य से लूटकर लाई गई राजकुमारियों के यौन शोषण के चित्रा को प्रस्तुत करने के लिए किया गया है।

सुल्तान अलाउद्दीन, खिज्र खाँ और मुबारकशाह असत के प्रतीक हैं और उन पर सत् के प्रतीक के देवलदेवी व धर्मदेव (नसिरुद्दीन खुशरव शाह) विजय प्राप्त करते हैं। वस्तुतः इसी घटनाक्रम को केंद्र में रखकर इस उपन्यास की रचना की गई। उपन्यास के अंतिम पृष्ठों में यह धर्म की पुर्नस्थापना के साथ इसका उद्देश्य पूर्ण होता है। यही कारण है कि कथानक यहीं पर समाप्त हो जाता है, और उसमें गाजी मलिक और जूना खाँ के षड्यंत्रों का वर्णन नहीं होता है। इन षड्यंत्रों का शिकार होकर कुछ काल बाद युद्ध करते हुए महान् सम्राट् धर्म देव वीरगति को प्राप्त होते हैं। और उनकी मृत्यु की सूचना पाकर सम्राज्ञी देवलदेवी एक धर्मपरायण पत्नी की तरह जौहर में कूद कर भस्मीभूत हो जाती है। इस घटना का जिक्र किए बिना ही उपन्यास अपने ‘मंगल उत्सव’ अध्याय के साथ संपूर्ण होता है, ऐसा मेरा मानना है।

मध्यकालीन भारत में ऐसे कई उज्जवल नक्षत्रा हुए हैं, हुए होंगे जिनका यशपूर्ण वर्णन होना चाहिए। प्रस्तुत उपन्यास में यही प्रयास किया गया है। मेरा विश्वास है मेरे इस प्रयास से ‘देवलदेवी’ और ‘धर्मदेव’ की परम आत्मा को तनिक संतुष्टि अवश्य प्राप्त हुई होगी।

सम्राज्ञी देवलदेवी और सम्राट धर्मदेव को नमन करते हुए महान् ईश्वर को धन्यवाद देते हुए

सुधीर मौर्य

सुधीर मौर्य

नाम - सुधीर मौर्य जन्म - ०१/११/१९७९, कानपुर माता - श्रीमती शकुंतला मौर्य पिता - स्व. श्री राम सेवक मौर्य पत्नी - श्रीमती शीलू मौर्य शिक्षा ------अभियांत्रिकी में डिप्लोमा, इतिहास और दर्शन में स्नातक, प्रबंधन में पोस्ट डिप्लोमा. सम्प्रति------इंजिनियर, और स्वतंत्र लेखन. कृतियाँ------- 1) एक गली कानपुर की (उपन्यास) 2) अमलतास के फूल (उपन्यास) 3) संकटा प्रसाद के किस्से (व्यंग्य उपन्यास) 4) देवलदेवी (ऐतहासिक उपन्यास) 5) मन्नत का तारा (उपन्यास) 6) माई लास्ट अफ़ेयर (उपन्यास) 7) वर्जित (उपन्यास) 8) अरीबा (उपन्यास) 9) स्वीट सिकस्टीन (उपन्यास) 10) पहला शूद्र (पौराणिक उपन्यास) 11) बलि का राज आये (पौराणिक उपन्यास) 12) रावण वध के बाद (पौराणिक उपन्यास) 13) मणिकपाला महासम्मत (आदिकालीन उपन्यास) 14) हम्मीर हठ (ऐतिहासिक उपन्यास ) 15) अधूरे पंख (कहानी संग्रह) 16) कर्ज और अन्य कहानियां (कहानी संग्रह) 17) ऐंजल जिया (कहानी संग्रह) 18) एक बेबाक लडकी (कहानी संग्रह) 19) हो न हो (काव्य संग्रह) 20) पाकिस्तान ट्रबुल्ड माईनरटीज (लेखिका - वींगस, सम्पादन - सुधीर मौर्य) पत्र-पत्रिकायों में प्रकाशन - खुबसूरत अंदाज़, अभिनव प्रयास, सोच विचार, युग्वंशिका, कादम्बनी, बुद्ध्भूमि, अविराम,लोकसत्य, गांडीव, उत्कर्ष मेल, अविराम, जनहित इंडिया, शिवम्, अखिल विश्व पत्रिका, रुबरु दुनिया, विश्वगाथा, सत्य दर्शन, डिफेंडर, झेलम एक्सप्रेस, जय विजय, परिंदे, मृग मरीचिका, प्राची, मुक्ता, शोध दिशा, गृहशोभा आदि में. पुरस्कार - कहानी 'एक बेबाक लड़की की कहानी' के लिए प्रतिलिपि २०१६ कथा उत्सव सम्मान। संपर्क----------------ग्राम और पोस्ट-गंज जलालाबाद, जनपद-उन्नाव, पिन-२०९८६९, उत्तर प्रदेश ईमेल ---------------sudheermaurya1979@rediffmail.com blog --------------http://sudheer-maurya.blogspot.com 09619483963

2 thoughts on “उपन्यास : देवल देवी (कड़ी २)

  • विजय कुमार सिंघल

    अज्ञात अथवा अल्प-ज्ञात ऐतिहासिक घटनाओं को उपन्यास के रूप में सामने लाना एक अच्छा प्रयास है. बधाई !

    • जी श्रीमान, ये मेरा सूक्ष्म प्रयास है, इसमें कितना सफल रहा हूँ इसका निर्णय तो पाठक ही करेगे।

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