खामोशी
सोंधी सोंधी खुश्बू लिये
घेर लेती होगी
ख़ामोशी कों ..जब फिज़ा
उसके सीने में भी
होता होगा
दर्द मीठा मीठा
वह भी कर रही होगी
किसी की चिर प्रतीक्षा
उसकी आखों से भी
छलक आते होंगे अश्रु
याद में किसी के सहकर
असहनीय पीड़ा
गुंज़ती होगी उसके भी
कानों में
दर्द भरी सदा
जब गाता होगा
रुंधे हुए गले से
तन्हा पपीहा
सिहरा जाता होगा
उसके भी रोम रोम कों
अपने स्पर्श से
हिचकोले खाते हुए
बहता हुआ एक दरिया
सुनाता होगा
अपनी लम्बी दुःख भरी दास्ताँ
साहिल पर पहुंचा हुआ सफीना
सहम जाती होगी
तब खामोशी भी
पाकर खुद कों
मायुशियों के अनुत्तरित सवालों के
धुंध से घिरा
सोचती होगी
मुझे अपने मौन के दायरे में
चैन से रहने नहीं देती
बहुत बेरहम हैं
कोलाहल से भरी ये दुनियाँ
ख़ामोशी कों विरह के एकांत में
जीते हुए बीत गयी हैं सदिया
किशोर कुमार खोरेंद्र
बहुत अच्छी कविता .
thankx a lot gurmel sir