बालगीत – ‘गर्मी गयी विदेश घूमने’
थककर बैठे कूलर दादा , कुछ दिन थोड़ा सुस्ताते हैं ,
सिर पर अपने हाथों को रख ,पंखे चाचा अलसाते हैं |
फ्रिज बेचारी कुड़ कुड़ करती , ठंडी आहें छोड़ रही है ,
बर्फ पुरानी पड़े – पड़े , अपना ही माथा फोड़ रही है |
बंद पड़ी डिब्बे मे कुल्फी , बड़ी बेबसी बता रही है ,
मुंह से अपने भाप छोडती ,चाय सयानी चिढ़ा रही है |
गर्मी गई विदेश घूमने , अब सर्दी का राज चल रहा ,
गर्मी वाले ठंडे पड़ गए ,बस हर जगह अलाव जल रहा |
वाह किया बात है .
वाह ! वाह !!