बाल कविता

बालगीत – ‘गर्मी गयी विदेश घूमने’

थककर बैठे कूलर दादा , कुछ दिन थोड़ा सुस्ताते हैं ,

सिर पर अपने हाथों को रख ,पंखे चाचा अलसाते हैं |

फ्रिज बेचारी कुड़ कुड़ करती , ठंडी आहें छोड़ रही है ,

बर्फ पुरानी पड़े – पड़े , अपना ही माथा फोड़ रही है |

बंद पड़ी डिब्बे मे कुल्फी , बड़ी बेबसी बता रही है ,

मुंह से अपने भाप छोडती ,चाय सयानी चिढ़ा रही है |

गर्मी गई विदेश घूमने , अब सर्दी का राज चल रहा ,

गर्मी वाले ठंडे पड़ गए ,बस हर जगह अलाव जल रहा |

अरविन्द कुमार साहू

सह-संपादक, जय विजय

2 thoughts on “बालगीत – ‘गर्मी गयी विदेश घूमने’

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    वाह किया बात है .

  • विजय कुमार सिंघल

    वाह ! वाह !!

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