तुम हो वही …
मेरी सारी कल्पनाएँ ..
अधूरी हैं …
तुम्हारे बिना
इसलिए साये की तरह मैं
किया करता हूँ …
तुम्हारा पीछा
मैं ही वह …
तिनका होता हूँ
जिसे तुम . तन्हाई में यूँ ही
तोड़ लिया करती हो
मै ही वह ….
रेत हुआ करता हूँ
जिसे तुम मुट्ठी में भर
फिर गिरते हुए देखा करती हो
मैं समुद्र के मंझधार में फंसा
वह नाव ….
हुआ करता हूँ
जिसके प्रति तुम
करुण हो जाया करती हो
कभी कभी जब तुम्हारी इच्छा होती हैं
मुझे गुलाब की तरह
अपने जुड़े में ….
सजा लिया करती हो
तुम जिसे अपने कन्धों पर
फैला दिया करती हो
मै तुम्हारे आँचल का वही हूँ
प्रेम के
गाड़े रंग से रंगा एक सीरा
आईने के सामने जब भी तुम आती हो
प्रतिबिम्ब सा मै कह उठता हूँ
तुमसा सुंदर इस जहाँ में
मुझे कोई और न ..दिखा
तुम्हारी तस्वीर कों जब भी देखता हूँ
हर बार तुम नयी लगती हो
तुमसे बात करूँ या न करूँ
मन में होती हैं
पर संकोच वश ..यही दुविधा
तुम न जाने मुझसे क्या …
कहना चाहती हो
तुम्हारी ख़ामोशी के वृत्त से
मै केंद्र की तरह ….
सदा रहता हूँ घिरा
मेरे ख्यालों का तुम सावन हो
जिससे रहता हूँ मै भींगा
मै यदि कहानी हूँ तो तुम हो
उसकी एक ..आदर्श नायिका
जिसे मै रोज लिखना चाहता हूँ
पर अब तक ..
नहीं लिख पाया हूँ
तुम हो वही …
मेरी अदभुत कविता
किशोर कुमार खोरेंद्र
बढ़िया !
aabhaar vijay ji