मै ऐसा लिखूं गीत
मै ऐसा लिखूं गीत
कि रोम रोम
तुम्हारे हो जाए झंकृत
अधरों से भी तुम्हारे
जो मीठा हो अधिक
तुम्हारी चेतना
के उपवन में
सावन ..बरसाने लगे अमृत
मै ऐसा लिखूं गीत
कि…
साकार करे जो तुम्हारे
सभी सपनों कों
ऐसा हो स्वर्णीम भोर सा
तुम्हारे इर्द गिर्द
एक आलोक वृत्त
मै ऐसा लिखूं गीत
कि…
आईने में अपना रूप निहार कर
तुम निर्णय कर सकों
बिम्ब से सुंदर नहीं हैं प्रतिबिम्ब
शब्दों के जरिये तुमने ..
मुझे प्यार करने के लिये
किया हैं अधिकृत
मै ऐसा लिखूं गीत
ताकि –
सोच रहा हूँ
प्रेम की पराकाष्ठा का
मै बन जाऊं प्रतीक
कभी कोहरे में छिपी हुई
तन्हाई सी लगती हो
कभो बादलों से
मनोरम वादियों सा आवृत
मै ऐसा लिखूं गीत
कि…
तुम्हारे मन की हथेली पर
मेहँदी सी रच जाए मेरी प्रीत
किशोर कुमार खोरेंद्र
वाह वाह वाह ! किया बात है .
shukriya vijay ji
वाह !
dhnyvaad vijay ji