कविता

पिता

पिता को
कभी देखा नहीं
मां की तरह
द्वार पर
बच्चों का
इंतजार करते—–
अखबार के
पन्नों में
आंखे गड़ाए
मन ही मन
करते उनकी
सलामती की दुआ
ह्र्दय में
असीम प्यार लिए–
ना जाने
अन्त:करण के
किस कोने मे
छुपा लेते हैं
अपनी भावनाएं
उपर से
कठोर प्रतित होते–
किन्तु पिता
होते हैं
बहुत संवेदनशील
कल्पवृक्ष बन
हमारे सारे सपने
पिता साकर करते–
प्रतिकुल क्षणों
का सामना
धैर्य,संयम और
व्यवहारिकता से करना
पिता हमें सिखाते–
उनकी उंगलीथाम
कठोर रहों पर साकारात्मकता के साथ दौड़ना
हम सिखते–
अपने हाथ
के छाले
सदैव छुपाकर हमारे
भविष्य को
संवारने वाले
देवतुल्य पिता को
हमारा प्रतिदिन नमन !!

भावना सिन्हा !!

डॉ. भावना सिन्हा

जन्म तिथि----19 जुलाई शिक्षा---पी एच डी अर्थशास्त्र

4 thoughts on “पिता

  • Man Mohan Kumar Arya

    आपने “मातृ देवो भव, पितृ देवो भव, आचार्य देवो भव” की याद दिला दी। रचना के लिए बधाई।

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत सुन्दर भावनाएं, भावना जी !

  • महेश कुमार माटा

    क्या बात
    क्या बात
    क्या बात

    मन के भावों को झिंझोड़ क्र रख दिया
    Very very nice

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