आग
आग लगी है, आग लगेगी, आग लगाने आये हैं
कायरता की मोटी बेड़ी आज जलाने आये हैं
हृदयों में भड़के अंगारे तूफानों से टकराने को
रणचंडी की अपने लहू से प्यास बुझाने आये हैं
नयी जवानी नया खून और नया जोश उबलता है
देख देख धरती की हालत ह्रदय हमारा जलता है
नैराश्य भरा है जिनके मन उनको पुनः जगाने आये हैं
आग लगी है, आग लगेगी, आग लगाने आये हैं
सोया भाग्य जगाने फिर से हम चट्टानों से टक्कर लेंगे
आगे नित ही नित बढ़ने को तूफानों को टक्कर देंगे
गिरी हारकर है जो जवानी उसे उठाने आये हैं
आग लगी है, आग लगेगी, आग लगाने आये हैं!!
____सौरभ कुमार दुबे
बहुत अच्छी कविता .
बहुत प्रेरक कविता
Saurabh bhai kya bat kahi hai