जीवन – मृत्यु संवाद
एक दिवस—-
जीवन व मृत्यु में संवाद होने लगा
दोनों में कौन श्रेष्ठ ,वाद होने लगा,
बात बढ़ते-बढ़ते विवाद होने लगा
जीवन की हर बात का प्रतिवाद होने लगा |
अंतिम सत्य मृत्यु है, प्रचार होने लगा,
विपरीत वातावरण,जीवन भी निराश होने लगा,
मृत्यु के पक्ष में ही सरोबार होने लगा,
हर आस छोड़कर निढाल हो रोने लगा |
रोते-रोते उसको अचानक ,ये ख्याल आ गया
कर्म ही जीवन है , इसका भाव छा गया
निराश भावों को उसने , एक पल में भगा दिया
मृत्यु तो निष्क्रिय है, यह सबको बता दिया |
कर्म केवल जीव करता, जिंदगी की शान है
आत्मा भटकती रहती , मृत्यु के उपरांत है
जीव उसको आश्रय देता, जीवन की पहचान है
जीवन ही सर्व श्रेष्ठ है, सत्कर्म उसकी पहचान है |
डॉ अ कीर्तिवर्धन
सरल कविता में गहरे भाव !