उपन्यास : देवल देवी (कड़ी ६)
4. कामुक सुल्तान का हरम
यह दिल्ली के सुल्तान का विशेष हरम था। जहाँ उसने कई बेगमें और रखैले इकट्ठी कर रखी थी। पूर्व सुल्तान जलालुद्दीन की पुत्री और यादव नरेश रामदेव की कन्या उसकी प्रमुख बेगमें थी। प्रत्येक बेगम और रखैल के लिए अलहदा निवास था। जिनके दरवाजों पर सुंदर सुकोमल युद्ध में जीत कर लाई गई षोडशी हाथ बाँधे खड़ी रहती थी। जिस भी बेगम या रखैल से सुल्तान की सहवास करने की इच्छा होती थी वो या तो उसको अपने कक्ष में बुलवा लेता था या फिर खुद उसके कक्ष में चला जाता था। सुल्तान किसी भी वक्त अपनी बेगमों के पास हमबिस्तरी के लिए जा सकता था। बेगमों या रखैलों को सुल्तान की इच्छा टालने की इजाजत नहीं होती थी।
हरम के बीचों बीच एक सुंदर तालाब का निर्माण करवाया गया था। जिसमें सुल्तान के मनोरंजन के लिए रखैले और लौंडिया र्निवस्त्र गुस्ल करती थी। सुल्तान उनके साथ कभी-कभी पानी के अंदर ही कामक्रीड़ा का आनंद लेता था। उसके आदेश पर हर सुकुमारी को इच्छा या अनिच्छा होते हुए भी सुल्तान की यौन सहचरी बनना पड़ता था।
आज भी उसके विशाल और सुंदर जलाशय में न जाने कितनी युवतियाँ जल क्रीड़ा कर रही थी। सुल्तान सफेद मखमल के गद्दे पर मसनद के सहारे बैठा था। स्वच्छ पानी में कमल के फूल और बतखें तैरते हुए बड़े सुंदर दिख रहे थे। वो युवतियाँ उस तालाब में विभिन्न प्रकार की जल क्रीड़ाएँ कर रही थी। कई अपने दोनों बाहों को आसमान की तरफ उठकर पहले अपने उन्नत वक्षों को देखती फिर सुल्तान को। कई इस तरह से साँसे भरती कि उनकी नाभि के कंपन से पानी से बुलबुले उठने लगते। कोई-कोई अपने पानी से भीगे बालों को यू लहरा के अपनी पीठ पर डालती ज्यों अपने र्निवस्त्र शरीर को काले शाल से ढ़कना चाहती हों।
उनके बाल पीठ और कमर की देहराशी तो छुपा लेते पर नितंबों के कसाब को खुला छोड़ देते।
अलाउद्दीन काफी देर तक जल क्रीड़ा देखता रहा। आज वो खुद सरोवर में नहीं उतरा। क्रीड़ा कर रही हर दोशीजा को वो गुजरात की राजरानी कमलावती से तुलना करता और फिर सर झटक देता। अचानक उसने हाथ की दो ताली बजाई। ये कनीज के बुलाने का संकेत था। वो आकर सिर झुकाकर खड़ी हो गई। अलाउद्दीन ने दासी से अपने कक्ष में गुले महल को भेजने का आदेश दिया। दासी ‘जी सुल्तान’ कहकर चली गई। ‘गुले महल’ का खिताब अलाउद्दीन ने देवगिरी की जीती हुई राजकुमारी को
अपनी बेगम बनाकर दिया था। वही लाल महल जिसको बलवन ने तामीर करवाया था। आज उसी लाल महल की मलिका कहलाती थी अलाउद्दीन की ये बेगम। जिसे दिल्ली के हरम में जबरन लाया गया था।
धीरे-धीरे आधी रात ढल चुकी थी। सुल्तान रेशमी बिछावन पर मसनद के सहारे अध लेटी अवस्था में था। दीवारों पर बेहद कामुक चित्र लगे थे कई चित्रों में संभोग की तमाम कलाओं को दिखाया गया था। कक्ष में गुलाबी प्रकाश का बंदोबश्त था। बहुत धीमा जो वातावरण को अत्यंत कामुक बना रहा था। देवगिरी की राजकुमारी चंद्रिमा जो सुल्तान अलाउद्दीन की पत्नी थी और गुलेमहल के नाम से जानी जाती थी मंद-मंद मुस्कराते हुए दरवाजे से अंदर आई। कामुक सुल्तान पर उसने मद भरी नजर डालकर उसको निहाल किया। गुलाबी रोशनी में गुलेमहल अत्यंत रूपवती लग रही थी। कमर के नीचे बहुत महीन सफेद कपड़ा पहने थी। वो कपड़ा इतना महीन था कि उसके आर-पार का साफ दिख रहा था। उसमें से छनकर उसके सुनहरे शरीर की रंगत अद्भुत छटा दिख रही थी। यह रंग कमर तक ही था। वो चोली नहीं पहने थी, इसलिए उसकी कमर के ऊपर के सब अंग बिलकुल साफ दिखाई पड़ रहे थे। गुलेमहल आगे बढ़ी। उसके पीछे-पीछे आठ दासियाँ। गुलेमहल ने सुल्तान के करीब पहुँचकर नीचे झुककर अभिवादन किया, उसके कदमों में सिर झुकाया। साथ में दासियों के भी सिर झुक गए।
सुल्तान ने नजर उठाकर देखा, फिर कड़कती आवाज में बोला ‘रक्स’। सुल्तान की रोबीले आवाज सुनकर गुलेमहल सूखे पत्ते की तरह काँपी और फिर उसके पैर नृत्य की ताल पर थिरक चले। कक्ष के बाहर मौजूद साजिंदो ने तरंग छेड़ी तो गुलेमहल के साथ आई हुई दासियाँ भी सुल्तान के हुजूर में झूम पड़ी। गुलेमहल का अंग-अंग नृत्य में उबल पड़ रहा था। नृत्य की पराकाष्ठा पर एक समय उसका पहना हुआ एकमात्र महीन वस्त्र भी खुलकर गिर पड़ा। इसी वक्त सुल्तान ने ताली बजाई ये ताली दासियों के बाहर जाने का और राजकुमारी का मसहरी पर आने का संकेत था।
निर्वस्त्र राजकुमारी जो रामदेव की लाड़ली रही थी, डरी सहमी सुल्तान के पास पहुँची। सुल्तान ने तुरंत उसे आलिंगनबद्ध कर लिया। गुलेमहल अभी भी सुल्तान के साथ कामक्रीड़ा में अभयस्त नहीं हुई थी। तभी वो सुल्तान के वेग से चीख कर दुहाई माँगने लगती थी। सुल्तान का कामज्वर रात भर न थमा और जब सुबह दासियाँ गुलेमहल को गुसल के लिए लेकर गई तो उसके कोमल यौनांग से रक्तस्त्राव हो रहा था।
गुलेमहल की एक अंतरंग दासी थी। नाम स्वर्णसेना। उसने पूछा राजकुमारी आपकी योनि से प्रथम अभिसार के समान हर बार रक्तस्त्राव का कारण समझ में नहीं आता। राजकुमारी आँखें बंद करके बोली सुल्तान की कामुकता बहुत अधिक है स्वर्णसेना ये तो अच्छा है उनकी कई बेगमें हैं। यदि सुल्तान के कक्ष में जाने का क्रम दो-तीन दिन लगातार चल जाए तो मृत्यु निश्चित है। स्वर्णसेना कुछ ओर पूछना चाहती थी पर राजकुमारी को आँखें बंद किए देखकर चुप रह जाती है।
मुझे लगता है अब उपन्यास में रोचकता बढ़ रही है।
जैसे जैसे कहानी आगे बढ़ रही है, वैसे वैसे उत्सुकता के साथ रोचकता भी बढती जा रही है.