तुम रहते हो…..
तुम रहते हो मेरे आसपास मुझे ऐसा लगता है
मैं तम हूँ तुम हो प्रकाश मुझे ऐसा लगता है
जगमगाते सितारों के बीच तुम चाँद सा खिले हो
तुम नूर से भरा हो आकाश मुझे ऐसा लगता है
मेरी गुमराह तन्हाई को ध्रुव तारे सा राह दिखाते हो
मुझमे जगाते हो आत्मविश्वास मुझे ऐसा लगता है
मंझधार में फंसीं नाव सा जब कभी घबरा जाता हूँ
उम्मीद के द्वीप सा आते हो पास मुझे ऐसा लगता है
मेरी राह में काँटों की जगह फूल बिछाते आये हो
पर तुम सिर्फ एक हो एहसास मुझे ऐसा लगता है
किशोर कुमार खोरेन्द्र
वाह किशोर जी ..दिल से उठी है आवाज़ मुझे ऐसा लगता है
बढ़िया ग़ज़ल !