समदर्शिता
समदर्शी शब्द का अर्थ है- दूसरों के दुःख और सुख को अपने जैसा समझने वाला या दूसरों के साथ सहानुभूति रखने वाला । गीता के अनुसार समदर्शी व्यक्ति सभी जीवों में एक जैसे चेतन तत्त्व का अनुभव करता है। संसार में ऐसे व्यक्ति कम ही मिलते हैं, जो अमीर-गरीब, काले-गोरे, स्वजातीय-विजातीय, मूर्ख-विद्वान् आदि भेदों को भुला कर सभी के प्रति समता का दृष्टिकोण रखें। ऐसे व्यक्ति प्रान्त, देश, रंग, सम्प्रदाय, धन, सम्पत्ति, जातीयता, पद और ज्ञान आदि द्वारा उत्पन्न भेदभाव का त्याग करते हुए प्रत्येक मनुष्य में समत्त्व की भावना स्थापित करते हैं। ऐसे लोगों की आत्मा महान् होती है। आम तौर पर लोग कहते हैं कि मनुष्य और पशु समान नहीं हैं, फिर इन दोनो के बीच समभाव कैसे मानें? वस्तुतः मनुष्य ओर पशु सभी जीवधारी हैं। जीवधारी होने के कारण इन सभी को भूख लगती है, इन्हें जीवन से प्यार होता है और दोनों को ही मृत्यु का भय रहता है। इन समान गुणों के कारण इनमें समभाव माना जा सकता है। जो मनुष्य सबको समान देखता है और दुःख के सन्दर्भ में समान भाव रखता है, गीता में उसे परम श्रेष्ठ योगी कहा गया है।
मन की समवृत्ति होना मनुष्य का अन्तिम लक्ष्य है। प्रायः हम अपने सम्बन्धियों के विषय में पक्षपात करते हैं और दूसरे लोगों के मामले में तिरस्कार का भाव रखते हैं, परन्तु समदर्शी व्यक्ति सदैव निष्पक्ष होता है। वास्तव में परमात्मा ही सच्चा समदर्शी है। परमात्मा के निकट पहुंचने के लिए हमें उसके इस गुण को प्राप्त करने के लिए योगदर्शन के यम, नियम आदि साधनों से इन्द्रिय नियंत्रण करना होगा। इसके अलावा काम, क्रोध, मोह आदि दुर्गुणों का त्याग करने के साथ ही विद्या और तप द्वारा आत्मा को पवित्र करना होगा। इसके बाद अभ्यास और वैराग्य की भावना के द्वारा समदर्शिता का गुण प्राप्त किया जा सकता है। यजुर्वेद में कहा गया है-‘‘ सब प्राणी मुझे मित्र दृष्टि से देखें और मैं सब प्राणियों को मित्र दुष्टि से देखूं। जो सब प्राणियों को परमात्मा में और परमात्मा को सब प्राणियों में देखता है, वह सच्चा समदर्शी है।
कृष्ण कान्त वैदिक
कृष्ण कान्त जी , लेख अच्छा है . अगर ऐसा हो जाए तो इस संसार में ही स्वर्ग हो जाए लेकिन यह मुमकिन होना असंभव है किओंकि हम ने इस दुनीआं में रहना है , और सभी लोग एक जैसे नहीं हैं . प्रतिएक विअकती का अपना अपना सुभाव है , यहाँ तक कि जानवरों के सुभाव भी एक दुसरे से नहीं मिलते . हाँ एक महात्मा जो संसार से निर्लेप रहता है उस के लिए संभव हो सकता है किओंकि उस ने तो सिर्फ उपदेश ही देना होता है .
अच्छा लेख। समदर्शिता एक अच्छा गुण है लेकिन उसका पालन करना सामान्य व्यक्तियों के लिए लगभग असम्भव है।