उपन्यास अंश

उपन्यास : देवल देवी (कड़ी ७)

5. जंग की मंत्रणा

एक ऊँचे तख्त पर सुल्तान अलाउद्दीन बैठा है। और उसके सामने कालीन पर उसके मुख्य दरबारी अमीर बैठे हैं। सुल्तान का भाई उलूग खाँ, वजीर नुसरत खाँ, सुल्तान की बेगम मलिका-ए-जहाँ का भाई अल्प खाँ, जफर खाँ और दिल्ली का कोतवाल आइन-उल-मुल्क सभी यथोचित आसन पर विराजमान हैं।

सुल्तान रौबदार आवाज में कहता है ”ऐ इस्लामी सल्तनत के जाँबाज सिपहसालारों, तुम सबने जिस बहादुरी से अब तक दुश्मनों को जंग के मैदानों में धूल चटाई है उससे मैं तुम सबका शुक्रगुजार हूँ। मैं अल्लाह पाक का भी शुक्रिया अदा करता हूँ जिसने तुम जैसे बहादुर अमीरों को हमें अता किया।“

सुल्तान की बात सुनकर वजीर नुसरत खाँ ने कहा- ‘ये तो सुल्तान की दरियादिली है जो वो खाकसारो को रूतबा अता करते हैं। हम सब इस्लाम और सुल्तान की सेवा में अपना सब कुछ दाँव पर लगाने को हर वक्त तैयार हैं।’ नुसरत खाँ की बात सुनकर वहाँ मौजूद सारे अमीर उसकी हाँ में हाँ मिलाते हैं।

अलाउद्दीन आगे कहता है, “तुम सब लोग जानते हो कि मंगोलों की बदमाशी अभी खत्म नहीं हुई है। ये लुटेरे बार-बार इस्लामी सल्तनत को ललकारते रहते हैं। इन काफिरों को सबक सिखाने के लिए एक बड़ी पल्टन हमेशा तैयार रखनी पड़ती है। जिस पर बेहद खर्चा होता है। इससे हमारा खजाना खाली हो रहा है। इसे भरना निहायत जरूरी है। मैं चाहता हूँ आन्हिलवाड़ जो अभी इस्लामी झंडे के नीचे नहीं आया है और वहाँ काफिरों की शाही है। उसे इस्लामी झंडे के नीचे लाया जाए। वहाँ इस्लामी निशान रोपा जाए। बुतपरस्ती खत्म की जाए, गैर-इस्लामी जनता से जजिया वसूला जाए। वहाँ की दौलत और जवान औरतों को लूट लिया जाए। और वहाँ की रानी कमलावती और शहजादी देवलदेवी को हमारे हरम में लाया जाए।”

सुल्तान की बात सुनकर सब अमीर वाह-वाह कर उठे, मानो सुल्तान ने जंग की नहीं जनता की भलाई की योजना बनाई हो।

सुल्तान ने कहा ”मैं चाहता हूँ वजीर नुसरत खाँ और उलूग खाँ इस मुहिम पर जाए और काफिर कर्ण देव और उसके बुतपरस्त शाही का नामोनिशान मिटा दें। खासकर सोमनाथ का बुत जाकर खत्म किया जाए।“

नुसरत खाँ खड़े होकर कहता है ”जो हुक्म आलीजाह, बहुत जल्द मैं सुल्तान की सेवा में आन्हिलवाड़ की तमाम दौलत, सोमनाथ के बुत के टुकड़े और कमलावती व देवलदेवी को आपके हुजूर में पेश करूँगा।“

सभी अमीर एक साथ कहते हैं, ”सुल्तान का इकबाल बुलंद हो, सुल्तान की फतह हो।“

सुल्तान कहता है “अल्लाह हो अकबर।” फिर पूरा दरबार अल्लाह हो अकबर से गूँज उठता है।

सुधीर मौर्य

नाम - सुधीर मौर्य जन्म - ०१/११/१९७९, कानपुर माता - श्रीमती शकुंतला मौर्य पिता - स्व. श्री राम सेवक मौर्य पत्नी - श्रीमती शीलू मौर्य शिक्षा ------अभियांत्रिकी में डिप्लोमा, इतिहास और दर्शन में स्नातक, प्रबंधन में पोस्ट डिप्लोमा. सम्प्रति------इंजिनियर, और स्वतंत्र लेखन. कृतियाँ------- 1) एक गली कानपुर की (उपन्यास) 2) अमलतास के फूल (उपन्यास) 3) संकटा प्रसाद के किस्से (व्यंग्य उपन्यास) 4) देवलदेवी (ऐतहासिक उपन्यास) 5) मन्नत का तारा (उपन्यास) 6) माई लास्ट अफ़ेयर (उपन्यास) 7) वर्जित (उपन्यास) 8) अरीबा (उपन्यास) 9) स्वीट सिकस्टीन (उपन्यास) 10) पहला शूद्र (पौराणिक उपन्यास) 11) बलि का राज आये (पौराणिक उपन्यास) 12) रावण वध के बाद (पौराणिक उपन्यास) 13) मणिकपाला महासम्मत (आदिकालीन उपन्यास) 14) हम्मीर हठ (ऐतिहासिक उपन्यास ) 15) अधूरे पंख (कहानी संग्रह) 16) कर्ज और अन्य कहानियां (कहानी संग्रह) 17) ऐंजल जिया (कहानी संग्रह) 18) एक बेबाक लडकी (कहानी संग्रह) 19) हो न हो (काव्य संग्रह) 20) पाकिस्तान ट्रबुल्ड माईनरटीज (लेखिका - वींगस, सम्पादन - सुधीर मौर्य) पत्र-पत्रिकायों में प्रकाशन - खुबसूरत अंदाज़, अभिनव प्रयास, सोच विचार, युग्वंशिका, कादम्बनी, बुद्ध्भूमि, अविराम,लोकसत्य, गांडीव, उत्कर्ष मेल, अविराम, जनहित इंडिया, शिवम्, अखिल विश्व पत्रिका, रुबरु दुनिया, विश्वगाथा, सत्य दर्शन, डिफेंडर, झेलम एक्सप्रेस, जय विजय, परिंदे, मृग मरीचिका, प्राची, मुक्ता, शोध दिशा, गृहशोभा आदि में. पुरस्कार - कहानी 'एक बेबाक लड़की की कहानी' के लिए प्रतिलिपि २०१६ कथा उत्सव सम्मान। संपर्क----------------ग्राम और पोस्ट-गंज जलालाबाद, जनपद-उन्नाव, पिन-२०९८६९, उत्तर प्रदेश ईमेल [email protected] blog --------------http://sudheer-maurya.blogspot.com 09619483963

2 thoughts on “उपन्यास : देवल देवी (कड़ी ७)

  • विजय कुमार सिंघल

    रोचक उपन्यास ! इस कड़ी से स्पष्ट होता है कि किस तरह मुसलमान सुल्तान इस्लाम की आड़ में अपनी कुत्सित महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति किया करते थे।

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