कविता

अकेले

कभी जब होती हूँ बहुत
अकेले …….
सोचती हूँ हर संबंधों को
बहुत बारीकी से
और इस निष्कर्ष पर पहुँचती हूँ कि
हर रिश्ते मांगते हैं समर्पण
हम, जिसे शायद मालूम ही नहीं
प्रेम समर्पण ……
अकेलेपन के कवच से बाहर भी है
एक अनूठी दुनियां
जहाँ है प्रेम उपस्थित …….
भविष्य के सुख की सुखद स्मृतियाँ
साथ ही , दुःख के प्राचीन इतिहास
खिलते हैं प्रेम के फूल जहाँ …..
पर यह सब होता है तब ,जब मैं होती हूँ
बहुत अकेले ……..!

संगीता सिंह 'भावना'

संगीता सिंह 'भावना' सह-संपादक 'करुणावती साहित्य धरा' पत्रिका अन्य समाचार पत्र- पत्रिकाओं में कविता,लेख कहानी आदि प्रकाशित