कविता

आज की कविता

दूर कहीं किसी निर्जन में,
बदहाली पर अपनी,
आँसू बहा रही है!
आज की कविता——
किस बात का क्या अर्थ खोजें,
साथ खडे चेहरों की,
पहचान भी हो मुश्किल जहाँ,
देश की इज़्ज़त ,
पेडों पर टँगी,नज़र आती है!
जो जब चाहे, खेल लेता है,
उसकी ,अस्मत से,
हज़ार मोत, मर उठती है तब!
आज की कविता——-
सालों पहले जब किसी निर्जन से,
चीख उठती थी,आदिम पशुता,
चोंक ,सहम, उठते थे,सारे !
या किसी जंगली जानवर के,
भय से आतंकित होते हो,
पर इंसान से ज्यादा पशुता,
अब तो जानवर ने भी ,
इंसानियत का सुबूत दे दिया!
किस पर ऊँगली उठायें,
आप ही बतायें !
आज तो सरेआम ,
बलात्कार हो रहे हैं,
तार -तार हो रही है,
मासूमों की अस्मिता!
जैसे बलात्कार का
लायसेंस मिल गया हो!
या अपनी नपुसंकता को,
छुपाने का!
कि साथ मिल न पता चले,
कितना पुरुषार्थ है!
या नपुसंकता से बचने को,
मिल बैठ एक गिरोह ,
बना लेते हो!
इन्ही के साथ ,
गेहूँ के बीच घुन जैसे ,
आदम जात भी पिस जाते हों!
अभी वक्त है,जागो,
दूर हो जाओ तुम ,
इन नर राक्षसों से!
तुम्हारे अंदर जो नशे का दानव ,
जगाते हैं!
छुपाने अपनी कमजोरी को ,
उकसातें हैं तुम्हें !
खो गयी है,मासुमियत ,
कविता की !
हर कोई आज, अपना अर्थ,
खोज़ रहा है !
गड रहा है,हर दिन एक,
नयी कविता!
मरती हुयी इंसानियत ,
ओर दफ़न होते सपनो के बीच,
जहाँ मानवता का मूल्य आँकना ,
मानव के ही बस में नहीं!
जहाँ अंग्रेजों की,गुलामी का
दोर तो बीत गया है!
पर अपने ही देश में,
अपनों के द्वारा, लूटा जाना,
दयनीय तो है ही,
साथ ही बहुत घृणित मानसिकता,
का परिचायक भी है !
कराह रही है,
आज की कविता———
देश की आबरू के साथ ,
होते खिलवाड को देख !
अपने कल को सोच ,
चिंतित हो उठती है वो!
कि न जाने किस रंग रूप में,
ढल जाऊँगी में!
में तो आवाज हूँ,
हर मन की!
उनके दुख में केसे,
खिल -खिलाउँगी में!
चिंतित है,हेराँन्,परेशान है,
आज की कविता———

— राधा श्रोत्रिय”आशा”

राधा श्रोत्रिय 'आशा'

जन्म स्थान - ग्वालियर शिक्षा - एम.ए.राजनीती शास्त्र, एम.फिल -राजनीती शास्त्र जिवाजी विश्वविध्यालय ग्वालियर निवास स्थान - आ १५- अंकित परिसर,राजहर्ष कोलोनी, कटियार मार्केट,कोलार रोड भोपाल मोबाइल नो. ७८७९२६०६१२ सर्वप्रथमप्रकाशित रचना..रिश्तों की डोर (चलते-चलते) । स्त्री, धूप का टुकडा , दैनिक जनपथ हरियाणा । ..प्रेम -पत्र.-दैनिक अवध लखनऊ । "माँ" - साहित्य समीर दस्तक वार्षिकांक। जन संवेदना पत्रिका हैवानियत का खेल,आशियाना, करुनावती साहित्य धारा ,में प्रकाशित कविता - नया सबेरा. मेघ तुम कब आओगे,इंतजार. तीसरी जंग,साप्ताहिक । १५ जून से नवसंचार समाचार .कॉम. में नियमित । "आगमन साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समूह " भोपाल के तत्वावधान में साहित्यिक चर्चा कार्यक्रम में कविता पाठ " नज़रों की ओस," "एक नारी की सीमा रेखा"