उपन्यास : देवल देवी (कड़ी ८)
6. षड्यंत्र के सूत्रधार
राजसी सवारियाँ मार्ग के किनारे निर्मित धर्मशाला के सामने रूकी। अग्रगामी घुड़सवारों ने राजसी स्त्रियों के आने की पूर्वसूचना धर्मशाला के प्रबंधक को दे दी थी। प्रबंधक धर्मशाला के मुख्य द्वार पर अगवानी को खड़ा था। आन्हिलवाड़ की महारानी कमलावती सोमनाथ के दर्शन करके वापस महल की तरफ जा रही थी। उनकी रक्षा उपसेनापति कंचनसिंह और उनकी शस्त्र टुकड़ी कर रही थी। रात्रि विश्राम के लिए महारानी ने इस धर्मशाला का चुनाव किया था।
कहारों ने रत्नजड़ित पालकी अपने कंधे से उतारकर धर्मशाला के मुख्य द्वार पर रख दी। पालकी से बाहर महारानी ने अपना पैर बाहर निकाला ठीक उसी समय पश्चिम में सूर्य क्षितिज में विलीन हो गया मानो कि महारानी के पैर की उज्जवलता के आगे बिना लड़े ही शस्त्र डालकर अपने महालय में जा छुपा हो। दो दासियों ने महारानी को सहारा दिया। महारानी पालकी से उतरकर हौले होले डगो से धर्मशाला के भीतर की ओर बढ़ी। राह में दोनों ओर खड़ी धर्मशाला की परिचारिकाओं ने महारानी पर पुष्प वर्षा की। और उनके नाम की जय बोली।
महारानी को सुसज्जित कक्ष में ठहराया गया। उसके बगल के कक्ष में दासियों को और उसके बगल के कक्ष में उपसेनापति को।भोजन से निवृत्त होकर महारानी शयन के लिए अपने कक्ष में चली गई। बाकी सब भी अपने कक्ष में। केवल महारानी की दो निजी दासियाँ उनके साथ रह गईं। चँवर डुलाने और पाँव दबाने आदि के लिए।
दो-पहर रात ढलने के बाद महारानी के कक्ष में एक साया दबे पाँव आया। दासियों से खुसर फुसर की। दासियाँ महारानी को निद्रा से जगाकर कक्ष से बाहर चली गईं। महारानी शय्या से उठकर आगंतुक साये के वक्ष से लिपट गई। साये ने कहा ”महारानी एक अच्छी खबर है।“ महारानी ने विरोध किया ‘एकांत में तो महारानी न कहिए।’ साये ने हँसकर कहा ठीक है ‘कमले, अपनी योजना सफल हुई।“
महारानी साये का हाथ पकड़कर शय्या पर उसे अपने साथ बिठाते हुए बोली ”सो कैसे प्रिय।“
”माधव दिल्ली गया था।“
“तो?”
”अलाउद्दीन अब गुजरात पर आक्रमण करेगा।“
”पर ये तो अपनी योजना नही थी। एक मलेच्छ का आक्रमण ठीक नहीं है। हमने तो सोचा था माधव अपमानित होकर अन्य सामंतों के साथ मिलकर विद्रोह कर देगा। और इस गृहयुद्ध में हम महाराज को अपदस्थ कर देंगे। और मेरे प्रिय आप अन्हिलवाड़ के महाराज बनेंगे। जिनसे मैं प्रेम करती हूँ।“
”गृहयुद्ध न सही इस विदेशी आक्रमण के बाद महाराज की शक्ति क्षीण हो जाएगी दिल्ली का सुल्तान जब वापस चला जाएगा तो हम आसानी से महाराज को अपदस्थ कर सकेंगे।“ साया, महारानी को अंक में भरते हुए बोला।
”वाह, उप-सेनापति जी, ये भी ठीक रहा।“ महारानी उप-सेनापति के ओष्ठ पर अपने ओष्ठ रखते हुए बोली और उप-सेनापति कंचनसिंह महारानी कमलावती को कंठ से लगाकर शय्या पर लेट गया।
इस तरह के षड्यंत्र राज घरानों में चलते रहते थे. इसी कारण देश में हिन्दुओं का पतन हुआ था.
इन षडयंत्रो की बहुत बड़ी कीमत राष्ट्र ने चुकाई है।