भारत में प्रथम कन्या विद्यालय खोलने वाली शिक्षिका- सावित्री बाई फुले
आज यानि की 3 जनवरी को भारत की प्रथम बालिका विद्यालय खोलने वाली ज्योति सावित्री बाई फुले जी का जन्म दिवस है ।इनका जन्म 3 जनवरी 1831 में महाराष्ट्र के सतारा जिले के नयागांव नामक स्थान पर हुआ , सन 1840 में इनका विवाह महान समाज सुधारक ज्योतिबा फुले के साथ हुआ । पहले तो ज्योतिबा जी ने इन्हें स्वयं पढाया और बाद में स्कूली शिक्षा दिलाई।
15 मई 1848 में इन्होने बालिकाओं के लिए अलग स्कूल खोला और उसकी तथा देश की प्रथम महिला अध्यापिका बनी ।
वे उस स्कूल में शुद्र / दलित/ मुस्लिम आदि बालिकाओ को शिक्षा देने लगीं जिस कारण उन्हें स्कूल जाने से रोकने के लिए सवर्ण लोगो ने उन पर जगह जगह कीचड़ फेंक कर उनके कपडे गंदे करना आरंभ कर दिए ।
इससे बचने के लिए सावित्री जी गन्दी साडी पहन के जाने लगीं और साफ़ साडी झोले में रख ले ले जातीं , जिसे बाद में पहनकर लडकियों को पढ़ाती।
सवर्णों का मानना था की शुद्र और दलितों के बच्चो को खासकर लडकियों को पढने का कोई अधिकार नहीं है इसलिए उन्होंने सावित्री जी पर स्कूल जाते समय कई बार हमले भी करवाए पर सावित्री बाई दुस्साहस के साथ अपने काम में लगी रहीं।
इसके बाद उन्होंने 17 स्कूल और खोले, फुले दम्पत्ति द्वारा खोले गए स्कुल में ही पढ़ के फातिमा शेख उस स्कुल की प्रथम मुस्लिम छात्रा बनी और पढ़ के देश की पहली मुस्लिम महिला शिक्षिका ।
साबित्री बाई फुले जी ने मानसिक और शारीरिक पीड़ा सहते हुए भारत की बालिकाओ की शिक्षा के लिए जिस लगन और निष्ठा से कार्य किये हैं वह इतिहास में अद्वितीय है।
भारत की महिलाये हमेशा उनकी ऋणी रहेंगी …
लेख के लिए आभार ! ऐसी जानकारी अधिक से अधिक लोगों तक पहुचाई जानी चाहिए. उस महान महिला को मेरा करबद्ध प्रणाम !
आदरणीय सवित्रो बाई फुले की जयंती पर लेख के लिए धन्यवाद। महर्षि दयानंद जब पुणे पहुंचे और वहां प्रवचन किये तो श्री ज्योति बा फुले उसमे उपस्थित होते थे। उनके निवेदन पर दयानंद जी उनकी कन्याओं की पाठशाला में भी गए थे और वहां प्रवचन किया था। स्वामी दयानंद के पुणे प्रवास के दिनों में उनकी एक शोभा यात्रा निकाली गई थी जिसमे श्री ज्योति बा फुले अग्रिम पंक्ति में साथ साथ चले थे। फूले जी ने समाज सुधार के कार्यों पर दयानंद जी से मंत्रणा भी की थी। मैं समझता हूँ कि वर्तमान केंद्रीय सरकार को सावित्री बाई फुले जी की जयंती को राष्ट्रिय स्तर पर मानना चाहिए था। जाने अनजाने वह चूक गए। लेख के लिए आपका पुनः धन्यवाद।