एक कहानी
हर ह्रदय की अपनी है
एक कहानी
हर आँखों में है
खारा पानी
दर्द अधरों तक आकर
रह जाते हैं
मूक हो जाती है
न जाने कयों तब वाणी
लोग बहुत हैं दुनियाँ में
पर रह जाता है तन्हा
चित्त अनुरागी
तब ..
प्रकृति के सौन्दर्य से अभिभूत हो
मन की प्रवृति हो जाती है रोमानी
परिवर्तनशील है मौसम
कभी पतझड़ ,कभी बहार
कभी बरखा करती है
अपनी मनमानी
पर्वत ,जंगल ,
बादल ,अंबर
सब हैं साथी
मैं भी बहता हूँ
जब बहती है पुरवाई सुहानी
उदगम से मुहाने तक
चली आई नदिया
भूली नहीं हैं
पर वह अपनी जवानी
हर ह्रदय की अपनी हैं
एक कहानी
हर आँखों में है
खारा पानी
किशोर कुमार खोरेन्द्र क
बढ़िया !
बिलकुल सच लिखा है भाई साहीं , मज़ा आ गिया .