बिना वज़ह भी
ताकि तुम्हें कर लूँ
अपनी ओर आकर्षित
लेकिन मुझे मालूम नहीं
मुझे तुमसे यूँ मिलकर
क्या होगा हासिल
बिना वज़ह भी तो मै तुमसे
मिल सकता हूँ
यह सोचकर
मै अकेले में हो जाता हूँ रोमांचित
एक दो कविताएं ही सुना दूंगा
समुद्र की लहरों कों भी
दुःख होता हैं
यह बता दूंगा
तुम अगर
इज़ाज़त दोगी तो
तुम्हारे चेहरे कों जी भर
निहार लूंगा
प्यार या प्रेम के अलावा भी उपयुक्त कोई शब्द
क्या नहीं हैं…….?
जिसे मै तुम्हारे सामने कह पाऊँ
क्या हर संबंध कों नाम
देना जरुरी हैं…….
वही तो समझ नहीं पा रहा हूँ
की
तुम्हारा और मेरा रिश्ता हैं क्या आखिर
क्या तुम मुझे अच्छी लगती हो बस
तुमसे बाते किये बिना मै आगे लिख नहीं पाता
ह्रदय की यह सच्ची बात कर दूंगा
समक्ष घोषित
मै बहुत कर रहा हूँ कोशिश
ताकि तुम्हें कर लूँ अपनी ओर आकर्षित
किशोर कुमार खोरेन्द्र
किया खूबसूरत कविता है.
वाह वाह बहुत सुंदर !