कविता

मोहब्बत

तुम अपने हाथो की मेहँदी में

मेरा नाम लिखती थी और

मैं अपनी नज्मो में तुझे पुकारता था जानां ;
लेकिन मोहब्बत की बाते अक्सर किताबी होती है

जिनके अक्षर

वक्त की आग में जल जाते है

किस्मत की  दरिया में बह जाते है ;
तेरे हाथो की  मेंहदी से मेरा नाम मिट गया

लेकिन मुझे तेरी मोहब्बत  की  कसम ,

मैं अपने नज्मो से तुझे जाने न दूंगा…

ये मेरी मोहब्बत है जानां  !!

3 thoughts on “मोहब्बत

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहुत खूब.

  • विजय कुमार सिंघल

    वाह! सुंदर प्रेम कविता !!

  • रमेश कुमार सिंह ♌

    सुन्दर पंक्ति।

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