दुर्योधन की जंघा पर द्रोपदी को बैठाते दुशासन
शकुनी के पासे फिर चल गए
सहसा कर्ण ने द्रोपदी को वैश्या कहा
दुशासन उसे घसीटता हुआ सभा में ले आया
दुर्योधन ने वासनायुक्त अपशब्दों में द्रोपदी को
नग्न कर उसे अपनी जंघा पर बैठाने का निर्देश दे डाला
अर्जुन का ललाट क्रोध अतीव क्रोध से लाल हो गया
भीम के बाजू स्वतः फड़कने लगे
नकुल सहदेव भयंकर क्रोधाग्नि में जलने लगे
और धर्मराज सर झुकाए लज्जायुक्त ग्लानी से भर आये
द्रोपदी अपने पतियों से अपनी लाज बचाने की आस खो चुकी
सिर्फ भयंकर क्रन्दन करती रही
दुशासन चीर खीचता रहा खीचता रहा
उसकी वासना में डूबे चक्षु गुदगुदाने लगे
किन्तु तत्क्षण एक प्रकाश पुंज फूटा और कुरुवंश की नग्न होती
अस्मत को स्वयं साक्षात ईश्वर ने बचाया
आज दुशासन हर ठौर पर खड़े हैं
द्रोपदी जैसी सबल कित्नु अबलाओं की आबरू पर हाथ डालने उनके
बाजू फड़फडाते हैं,
वहीँ दुर्योधन अपनी जंघाए खोले बैठे हैं
कर्ण जैसे दानवीर भी चुपचाप स्त्री पर लांछन लगाने से बाज नहीं आते
उन्हें स्त्री ही पूर्णतः दोषी दिखती है
पितामाहों ने अपनी आँखें बंद कर ली हैं
द्रोण का धनुष इन नीचों के वध को नहीं उठता, वो लाचार है
अर्जुन, भीम, नकुल, सहदेव सबके हाथ बंधे हैं
धर्मराज मर चुके हैं
इस बार वे हारे नहीं हैं
उन्होंने अपने आस पास एक दीवार बना ली है
अपनी आत्मरक्षा की दीवार
जिसके पार जाना स्वयं को भीषण संकट में डालना है
कलयुग में चमत्कार नहीं होते
इसीलिए रोज दुशासन द्रोपदी का चीर तार तार कर
उसे दुर्योधनो को सौंप देते हैं
इन दुर्योधनो के फेर से द्रोपदी की लाज बचाने
आओ हम ही कृष्ण बनें!!
बहुत अच्छा लिखा है, आज युवाओं को इन्कलाब लाने की जरुरत है , देखा जाए तो दुहसासन या दुर्योधन इतने नहीं हैं , उन से कहीं ज़िआदा अर्जन भीम हैं , जरुरत है जागरूपता की , और इन लोगों का मुकाबला करने की .
बहुत ख़ूब! आपने महाभारत के कथानक के माध्यम से आधुनिक काल की प्रवृत्तियों पर बहुत कठोरता से लिखा है!