एक न एक दिन…
एक न एक दिन मैं तुम तक पहुँच जाऊंगा
गुबार हूँ तो क्या फलक तक पहुँच जाऊंगा
इस जहाँ में यह मुहब्बत एक तसव्वुर है
प्यार में तेरे मैं उफ़ुक तक पहुँच जाऊंगा
माना की मुझे बहुत रुसवा किया है जमाने ने
तेरे खातिर रूहानी सबक तक पहुँच जाऊंगा
रहे उल्फत ने तेरे शहर तक ला दिया है मुझे
तेरे घर ले जाए उस सड़क तक पहुँच जाऊंगा
तेरे आँगन में खूबसूरत गुल ही गुल खिले हैं
अब मैं तेरे जुड़े की महक तक पहुँच जाऊंगा
किशोर कुमार खोरेन्द्र
(गुबार=धूल , फलक=,आकाश ,उफ़ुक =क्षितिज ,रुसवा =बदनाम ,सबक =अनुभव
रहे उल्फत =प्रेम का रास्ता ,)
बहुत खूब .
thank u