उपन्यास : देवल देवी (कड़ी १८)
15. रानी का कायरतापूर्वक समर्पण
एक दिन नृत्य महफिल से उठकर सुल्तान अपने हरम में गया। और बांदी से रानी कमलावती को बुलाने को कहा। घड़ी भर भीतर रानी कमलावती, सुल्तान के सामने उपस्थित हुई।
सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी, कमलावती के उज्ज्वल उन्मादक रूप पर मोहित हो गया। कमलावती की यौवन-मत्त आँखें और उद्वेगजनक अधर, सोने-सी चमकती देहराशि, इन सबने सुल्तान अलाउद्दीन को कामांध बना दिया। वह कमलावती के रूप की प्रशंसा सुनकर ही उसे जीतकर अपने हरम में लाया था।
आज वही कमलावती उसके मनोरंजन के लिए उसके सामने हाजिर थी। सुल्तान अचंभित सा न जाने कितनी देर उस सुंदर रानी को देखता रहा। जिसकी षोडशी की तरह सुकोमल पिंडली, जंघा और पतली सी कमर, हरी साड़ी और उस पर धानी चूनर, उसके भीतर अनार की तरह एक जोड़ी उन्नत स्तन। सुल्तान को यूँ सम्मोहित खड़ा देख, रानी ने उसके सामने झुकते हुए कहा ”सुल्तान की सेवा में रानी का प्रणाम।“
अलाउद्दीन अपनी उंगली से कमलावती की ठोढी को ऊपर उठाते हुए बोला ”माशा अल्लाह, बेहद खूबसूरत और नाजुक, बिल्कुल तुम्हारी देवियों के बुतों की तरह।“
”सुल्तान! यह तो दिल्ली अधिपति की वाणी नहीं है।“
”सच कहा रानी कमलावती। यह सुल्तान तुमसे निकाह करने का इच्छुक है।“
”सुल्तान की इच्छा मानना, दासी का कर्तव्य है। मैं तो आपकी बांदी बनकर भी प्रसन्न रहूँगी।“
”आज से पहले लूटकर लाई गई कोई रानी या राजकुमारी यूँ हमारी दासी बनने को लालायित नहीं रही। आप हमारे दिल को जीत रही हैं।“
”उन्हें शायद सुल्तान की वीरता की पहचान नहीं। मैं तो धन्य हूँ जो संसार के सर्वश्रेष्ठ वीर ने मेरी इच्छा रखी और मेरे लिए युद्ध करके मुझे प्राप्त किया।“
”निस्संदेह, यह जंग तुम्हें हासिल करने के लिए ही हुई, हम तुम्हें अपने दिल की मलिका बनाएँगे।“
”केवल दिल की मलिका, हमने तो सुना है सुल्तान ने देवगिरी की राजकुमारी को गुलमहल की पदवी दी है और वह सुल्तान की विशेष रानी है।“
”हाँ, वह इतनी खूबसूरत है कि हम उसे गुलमहल कहने पर मजबूर हो गए, वह अब हमारी बेगम है।“
”क्या सुल्तान की निगाह में यह दासी देवगिरी की राजकुमारी चंद्रावलि के मुकाबले कुछ नहीं। क्या यह कोई पदवी सुल्तान से प्राप्त न कर सकेगी।“
”नहीं-नहीं, कमलावती तुम हमारी दिल की मलिका बनोगी, हमारी बेगम बनोगी, सब बेगमों से ऊपर। तुम्हारी खूबसूरती बेमिसाल है कमलावती, हम तुम्हें मुल्क की मलिका बनाते हैं। आज से तुम कमलावती नहीं, ‘मलिका-ए-हिंद’ कहलाओगी।“
”ओह सच! इतना सम्मान इस दासी के लिए, सुल्तान हमें कोई भी पदवी दें, पर यह कमलावती सुल्तान के चरणों की दासी ही रहेगी। मैं धन्य हुई सुल्तान क्या अब दिल्लीपति हमें अपनी सेवा का अवसर न देंगे।“
कमलावती की बात सुनकर अलाउद्दीन आगे बढ़कर उसे सीने से लगा लेता है। कमलावती प्रेयसी की तरह उसके गले लग जाती है। फिर उस रात वह कुलटा सुल्तान की शय्या पर एक वेश्या की तरह सुल्तान की कामक्रीड़ा में सहयोग करती है। अलाउद्दीन कमलावती के सर्मपण से खुश होकर उसे ‘मलिका-ए-हिंद’ का खिताब अदा करता है। कुछ ही दिनों में कमलावती सुल्तान की सबसे प्रिय बेगम बन गई।
रानियों और राजकुमारियों में भी सभी प्रकार कि महिलाएं होती हैं. कुछ कायरता से समर्पण कर देती हैं तो कुछ अपनी सतीत्व कि रक्षा के लिए प्राण देने में भी संकोच नहीं करती. उपन्यास बहुत रोचक है.
ha hamare samne padmini ka bhi udaharan he..
Queen kamalavati was celebrated af flower of india and by her great physical beauty and clever mind she earned the title of mallika-e- hind.She should be paid ample respect.Inspite of criticising her you should admire her .