तुम्हारे जाने के बाद
तुम्हारे जाने के बाद
कुछ दिनों तक
खामोश रहते हैं लब
आंखों की पुतलियों में
उदासी ठहर जाती है
कुछ दिनो तक
सुबह–सुबह
चिड़ियों का चहचहाना
मुझे नही भाता है
बंद रखती हूं
दरवाजे और खिड़कीयां
यादों के चादर ओढ कर
देर तक मैं सोना चाहती हूं
तुम्हारा लाया
लाल गुलाब का वो गुलदस्ता
मुर्झाकर भी
तुम्हारी याद दिलाता है
अंदर ही अंदर जारी रहता है
तुमसे गुपचुप संवाद
कब होती है सुबह, होती है कब शाम
वक्त का पता ही नही चलता
घड़ी में चाभी देना
मै भूल जाती हूं
तुम्हारे
यादों में गहनता से खोए हुए
बनाती हूं जब रोटियां
अक्सर जल जाती है उंगलियां
होता नही जलन का
जरा भी अहसास
और मै ऐंटी सेप्टिक मलहम लगाना
भूल जाती हूँ
कुछ दिनो तक
मेरे कमरे मे मेरे साथ
टहलती है गहरी नीरसता
मैं पुरानी जिन्दगी में
लौग इन करना
भुल जाती हूं
हां —
तुम्हारे जाने के बाद
कुछ दिनो तक !!!!!
****भावना सिन्हा ****
बहुत शानदार और भावपूर्ण कविता !
aabhar Sir
पिआर हो तो ऐसा हो , कविता अच्छी लगी.
shukriya
ati uttam
thanx
मैं पुरानी जिन्दगी में
लौग इन करना
भुल जाती हूं………बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना।
thahx