कविता

अचानक एक मोड़ पर

 

अचानक एक मोड़ पर, अगर हम मिले तो,
क्या मैं, तुमसे; तुम्हारा हाल पूछ सकता हूँ;
तुम नाराज़ तो नही होंगी न?

अगर मैं तुम्हारे आँखों के ठहरे हुए पानी से
मेरा नाम पूछूँ; तो तुम नाराज़ तो नही होंगी न?

अगर मैं तुम्हारी बोलती हुई खामोशी से
मेरी दास्ताँ पूछूँ; तो तुम नाराज़ तो नही होंगी न?
अगर मैं तेरा हाथ थाम कर, तेरे लिए;
अपने खुदा से दुआ करूँ; तो तुम नाराज़ तो नही होंगी न?

अगर मैं तुम्हारे कंधो पर सर रखकर,
थोड़े देर रोना चाहूं; तो तुम नाराज़ तो नही होंगी न?

अगर मैं तुम्हे ये कहूँ, की मैं तुम्हे;
कभी भूल न पाया; तो तुम नाराज़ तो नही होंगी न?

अचानक एक मोड़ पर, अगर हम मिले तो,
क्या मैं, तुमसे; तुम्हारा हाल पूछ सकता हूँ;
तुम नाराज़ तो नही होंगी न?