जिंदगी के कुछ पन्ने ……
बोलते हैं जिंदगी के कुछ पन्ने ….. कुछ इस तरह ….
जिंदगी की किताब के
कुछ पुराने पन्ने पढ़कर
हमेशा ही मुस्कुराने को जी चाहता है
आखिर क्यूँ न चाहे मुस्कुराना
उन् पन्नो में महकती है
खुशियों की खुशबू……
कुछ पन्ने बेजान से
उदास उदास हैं छुपाते हैं दर्द
पर कहाँ छुप पाते है
वो दर्द और उसमे लिपटे आंसू
पन्ने खुलने की देर है
और बेजुबान दर्द बोलने लगता है
आँखों के जरिये …….
कुछ पन्नो पर लिखी हैं शिकायतें
जो आज भी मुंह निकाले इंतज़ार कर रही हैं
मेरी माफ़ी का .. पर मेरा अहं
आज भी रोके हुए हैं माफ़ी लेने-देने को
भूल नहीं पाए हैं वो गलतियाँ वो फब्तियां
जो हमने की या फिर जो हमने सही …..
कुछ पन्नो पर लिखे हैं सपने
कुछ पूरे हो गए कुछ अभी बाकी हैं
अधूरे सपने चिढ़ा रहे हैं
जता रहे हैं मेरी नाकामयाबियाँ
वहीँ पूरे हुए सपने दे रहें हैं हौसला
यूँही बढ़ते रहो आगे मेहनत और लग्न से
अधूरे सपने भी हो जायेंगे पूरे ……..
प्रवीन मलिक ….
बहुत अच्छी कविता।