न जाने क्यों….
न जाने क्यों तुम हरदम रहते बेजुबान से हो
अब तक न सुनी न कही गयी दास्तान से हो
अफ़सोस तेरे बारे में जान न पाया कुछ भी
पर तुम तो मेरे प्रणय गीत के उन्वान से हो
टूटे तारे सा जमीं पर बिखर गया हूँ तो क्या
तुम लगते मुझे , इंद्रधनुषी आसमान से हो
ताउम्र जीकर भी समझ में नहीं आई जिंदगी
मेरे लिए तुम भी तो सवाल कहाँ आसान से हो
न कुछ खोया न कुछ पाया इस जहाँ में आकर
जाते जाते बचे हुए मेरे अंतिम अरमान से हो
किशोर कुमार खोरेन्द्र
(दास्तान =कहानी ,उन्वान =शीर्षक ,अरमान =इच्छा )
बहुत अच्छी कविता है.