कहानी

रधिया- एक देवदासी – 1

रधिया तेरह साल की एक बहुत ही गरीब परिवार की लड़की थी , जब वह पांच साल की थी तो उसकी माँ गुजर गई , उसकी एक छोटी बहन जो दस साल की थी गीता जिसे गितवा कह के पुकारते थे । रधिया का पिता संतू जिसको दो साल पहले आधे अंग में लकवा मार गया , इसलिए अब वह मजदूरी करने लायक नहीं रहा । संतू अपनी झोपडी में ही घाट पर पड़ा रहता , दोनों बहने उसकी देख भाल करती। घर की आर्थिक स्थिति बहुत खराब थी , दोनों बहने आस पास के गाँवों में छोटे मोटे काम करके गुजर बसर कर रहीं थी।

एक दिन दोनों बहने जब दुसरे गाँव से काम कर के वापस अपनी झोपडी की तरफ आ रही थी तो उन्होंने देखा की उनकी झोपडी में से एक अनजान व्यक्ति बहार निकल रहा था । उन्होंने उस व्यक्ति को गाँव में पहले कभी नहीं देखा था अत: वे दौड़ती हुई अपनी झोपडी में आई। अपने पिता से उन्हें पता चला कि वह व्यक्ति पास के जिले के एक बहुत बड़े मंदिर का मुनीम था जिसका नाम संपत था ।

वह चाहता था की रधिया उसके मंदिर की देवदासी बने। रधिया के पूछने पर की यह देवदासी क्या होता है तो संतू ने बताया की मंदिर में जो लड़कियां मंदिर की सेवा के लिए रखी जाती हैं उन्हें देवदासी कहते हैं । उनका विवाह मंदिर के देवता से कर दिया जाता है और उसे मंदिर में ही रहना पड़ता है । इस पर रधिया ने साफ़ मना करते हुए कहा की वह उसको और गितवा को छोड़ के कंही नहीं जाएगी , वह चली गई तो उनकी देखभाल कौन करेगा?।

इस पर संतू ने उसे समझाते हुए कहा की मंदिर में काम के बदले खाना , कपडे और रूपये भी मिलेंगे जिससे उनकी गरीबी दूर हो जाएगी और गितवा को कंही काम करने की जरुरत नहीं रहेगी ।

संतू ने रधिया को समझाना जारी रखा ‘ देख रधिया संपत जी कह रहे थे की वह तेरे काम के बदले हर महीने मुझे 1000 रूपये भेजते रहेंगे और खाना कपडा अलग से ,अरे बहुत बड़ा मंदिर है वह हजारो लोग रोज दर्शन को आते हैं । तेरे जैसी दसियों लड़कियां काम करती हैं उधर कोई परेशानी नहीं होगी वंहा तुझे ,मैं हर महीने तुझ से मिल सकता हूँ … भगवान् की सेवा करना तो पुण्य का काम होता है पगली । यह तो हमारी किस्मत है की इस काम के लिए उन्होंने तुझ जैसी छोटी जात की लड़की को चुना है। यह देख पांच सौ रूपये भी देके गए हैं और यह मिठाई का डिब्बा भी। संतू ने पांच सौ का नोट और मिठाई का डिब्बा दिखाते हुए कहा ।

गितवा झट से मिठाई का डिब्बा संतू के हाथ से लेके उसे खोल के देखने लगी , इतनी रंगबिरंगी मिठाइयाँ देख के उसकी ख़ुशी का ठिकाना न रहा उसने तुरंत दो रसगुल्ले ले के मुंह में डाल लिए। राधिका ने पांच सौ का नोट हाथ में पकड़ के उसे उलट पलट के देखने लगी इतना बड़ा नोट पहले कभी नहीं देखा था। फिर उसने चुप चाप वह नोट संतू को थमा दिया और खाना बनाने चली गई । दो दिनों के भीतर सन्तु ने तरह तरह बाते बता बता के रधिया को देवदासी बनने पर राजी कर लिया था ।

तीसरे दिन संपत फिर संतू की झोपडी मेब आया , थोड़ी देर बाद इधर उधर की बाते कर के रधिया को अपने साथ ले जाने लगा । रधिया भी चुपचाप गुमसुम सी उसके पीछे चल दी , अभी दो कदम ही चली होगी की गितवा उससे लिपट गई और रोने लगी । उसे रोता देख रधिया भी रोने लगी पर संतू ने उसे चुप करवाया और अगले दिन मंदिर में जाके रधिया से मिलने का वादा किया। रधिया आँखों में आंसू लिए संपत की मोटरसाइकिल पर बैठ गई।

तक़रीबन एक घंटे बाद संपत देवस्थल पहुच गया , रधिया ने देखा की यह तो बहुत बड़ा देवस्थल है , कई देवी देवताओ की मूर्तियों से सुसज्जित , चमचमाता फर्श, आकाश छूती गुम्बदे, सैकड़ो भक्त भक्ति देव दर्शन के लिए पंक्ति लगाये हुए हैं। रधिया को यह सब सपने जैसा लगा , जैसे किसी और दुनिया में आ गई हो ।

संपत रधिया को लेके सीधा मंदिर के पीछे बने कमरों में ले गया। तकरीबन 7-8 कमरे बने हुए थे ,हर घर में आधुनिक सुविधा थी । जिस कमरे में संपत रधिया लो ले गया उसमें दो युवतियां पहले से मौजूद थी जिनकी उम्र तक़रीबन 25-26 साल रही होगी । संपत ने उन युवतियों को संबोधित करते हुए कहा ” सीमा, मैना यह रधिया है और आज से यह तुम लोगो के साथ ही रहेगी, कल इसको ‘चूड़ी पहनाई’ जायेगी। उसके बाद संपत ने उन युवतियों से रधिया को कुछ खिलने पिलाने का आदेश देके चला गया।

अगले दिन सुबह ही सीमा ने रधिया को नहला के और नए कपडे पहना के सिंगार आदि कर के तैयार कर दिया था , रधिया आज बहुत सुन्दर लग रही थी जैसे कोई कोमल कली हो। थोड़ी देर में संपत भी आ गया , जब उसने रधिया को देखा तो देखता ही रह गया ।उसकी आँखों में अजीब सी चमक उभर आई थी उसने रधिया के गालो पर हाथ फेरते हुए कहा ‘ वाह! आज तो परी लग रही है तू” । रधिया को उसकी यह हरकत बड़ी अजीब सी लगी वह शरमा के अपने में ही सिमट गई।

संपत सीमा , मैना और रधिया को लेके मंदिर के मुख्य कक्ष में पंहुचा । वंहा मंदिर के मुख्य पुजारी के साथ एक पुजारी और था । मुख्य पुजारी को सभी लोग ‘महाराज’ बोलते थे । संपत रधिया को लेके महाराज के पास पंहुचा ,महाराज के सामने पहुचते ही संपत उसके चरणों में लेट गया । महाराज ने आशीर्वाद दिया तो खड़ा होक उसने रधिया को आगे करते हुए कहा ” महाराज जी यह है रधिया’।

महाराज ने रधिया की तरफ देखा तो वह भी थोड़ी देर देखता ही रहा। फिर जोर से बोला’ भगवान् तेरा भला करे’आजसे तुझे मंदिर के कामो में हाथ बटाना है । तेरा आज देवता से विवाह होगा ,उसके बाद तू देवता की पत्नी हो जाएगी और जीवन भर तुझे मंदिर और देवता की सेवा करनी होगी।

रधिया चुपचाप थी मानो यंत्र चालित , जो कहा जा रहा था बस वह वो किये जा रही थी बिना कुछ पूछे। थोड़ी देर मेब महाराज जी ने एक मूर्ति के साथ रधिया का विवाह कर दिया। संपत ने सीमा को इशारा किया तो वह रधिया को लेके वापस कमरे पर आ गई । कमरे में आते ही सीमा ने रधिया को तरह तरह के मिठाइयाँ और पकवान दिए खाने को

शेष अगले भाग में ..

-केशव

संजय कुमार (केशव)

नास्तिक .... क्या यह परिचय काफी नहीं है?

2 thoughts on “रधिया- एक देवदासी – 1

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत मार्मिक कहानी. हालांकि देवदासी प्रथा अब लगभग समाप्त हो गयी है, लेकिन इसके दूसरे रूप कहीं कहीं दिखाई देते हैं.

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    धर्म के नाम पर घोर अपराध .

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