इंतज़ार में मौन
इंतज़ार में मौन
इंतज़ार में मौन
तडफता है
कभी नसों में चीटीयाँ
रेंगती सी लगती है
घास के तिनके भी
काटों की तरह चूभ जाते है
वृक्ष की सूखी हुई छालों की तरह
दर्द का अहसास
हथेलियों पर आप से आप गिर आता है
झुकी हुई टहनिया छोड़ कर मेरी
उंगलिया …मुझे चिडाती हुई
लचकती हुई
ऊपर ऊठ जाती हैं
धूप की चमक आँखों के सामने अंधेरा
बिखेर जाती है
सब कुछ दोपहर की तरह सूना सूना
सा लगने लगता है
मैं पत्थर के एक गोल टुकड़े की तरह
सरोवर के जल की सतह पर
जोरों से वक्त के हाथों उछला हुआ सा
फिसलता ..दौड़ता हुआ सा
खुद कों महसूस करता हूँ
चिड़ियों की तरह छाँव के संग फिर
चुपचाप दुबक कर..बैठ जाता हूँ
kishor kumar khorendra
बहुत खूब .
thank u very much