कविता

प्रतीक सप्तक

(१)
कोश नहीं किसी को तू, तू खुद से कोसों दूर  ।
छोड़ अपने लोगों को, कोष हुआ मशहूर ।।

(२)
जोड़ लेगा पैसा बेशक़, रिश्ते नाते हैं अति दूर ।
दाँव लगाया जीवन सारा, इज्जत चकनाचूर ।।
(३)
प्यार खरीद न पाया तू, भाव टिका है संसार ।
हर पल गाया पैसा पैसा, बिखर गया परिवार ।
(४)
महल बनाले सुन्दर कितना, समझ उसे श्मशान
जिसमें पुष्प खिले नहीं, वह वाटिका है स्थान
(५)
पूज ले तेंतीस कोटि को, भीतर हो अविश्वास
मन मन्दिर है सूना सूना, बाकी तो बकबास
(६)
दर्द नहीं है पीर पराई , मरा पड़ा एहसास
बात बड़ी औ कर्म हैं खोटे, उम्र हुई उनचास
(७)
दिन गँवाया निन्दा रस में, रात सोम रस पान
जन्म गँवाया तेरा मेरा, अब दो दिन मेहमान

डॉ गिरीश चन्द्र पाण्डेय (प्रतीक)

डॉ. गिरीश चन्द्र पाण्डेय 'प्रतीक'

पिथोरागढ़ उत्तराखंड

One thought on “प्रतीक सप्तक

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    अनमोल बचन बहुत अछे लगे .

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