गाँधी और गोडसे
कुछ दिन पहले से बहुत शोर मच रहा था कि देश में (वह भी देश की राजधानी में) गोडसे का मंदिर बन रहा है। अगर ऐसा हो गया तो देश की नाक कट जाएगी। अभी तक गांधी की पूजा करता आया देश गोडसे को कैसे स्वीकार करेगा?
इस प्रयास को रोकने के लिए पुलिस पूरी तरह मुस्तैद हो गयी। जो पुलिसवाले आतंकवादियों और नक्सलवादियों के सामने चूहे की तरह बिल में घुस जाते हैं वे निहत्थे हिन्दू राष्ट्रवादियों पर लाठियां लेकर पिल पड़ने में अपनी बहादुरी दिखाते हैं। उन्होंने गोडसे की मूर्ति लगाने का प्रयास विफल कर दिया और इसके लिए खुद ही अपनी पीठ ठोंक ली।
हमारे देश का सेकूलर यानी शर्म-निरपेक्ष मीडिया इस प्रयास को नाकाम कराने पर अड़ा था। दुष्प्रचार ही उनका हथियार है। सबसे पहले तो गोडसे की मूर्ति लगाने के प्रयास को उन्होंने पूरी निर्लज्जता से ‘गोडसे का मन्दिर बनाना’ कहा, जबकि ऐसी कोई योजना नहीं थी।
दूसरी बात, किसी की मूर्ति लगाना कब से गैर-कानूनी हो गया है? जब गांधी, नेहरू, भगत सिंह, आजाद, इंदिरा, राजीव, संजय गांधी, अम्बेडकर, पटेल, कांशीराम, मायावती की मूर्तियां लगायी जा सकती हैं, तो गोडसे की क्यों नहीं? किस कानून के अनुसार इस कार्य को रोका गया है?
गोडसे जी कोई देशद्रोही या आतंकवादी नहीं थे, एक अच्छे लेखक, पत्रकार और विद्वान थे। उन्होंने राजनैतिक कारणों से देश के हित में गांधी को मारा था और उसकी पूरी सजा पायी। अगर कुछ लोग उनकी विचारधारा में विश्वास रखते हैं तो इसमें गलत क्या है?
अगर देश को सबसे अधिक हानि किसी ने पहुंचायी है तो वे थे गांधी और नेहरू। अभी तक कोई नहीं बता पाया कि पाखंडी गांधी को राष्ट्रपिता क्यों और किस आधार पर कहा जा रहा है? उन्होंने जितने भी आन्दोलन और अनशन किये थे सब या तो बुरी तरह विफल हुए या उनसे देश को हानि हुई। देश का विभाजन कराना और पाकिस्तान को करोड़ों-अरबों रुपये देने के लिए अनशन करना क्या देशभक्ति के कार्य थे?
जो लोग गांधी को महिमामंडित करते हैं, उनको यह समझ लेना चाहिए कि उनको गोडसे को मानने वालों का विरोध करने का कोई अधिकार नहीं है। वे अपने विचार प्रकट करने के लिए स्वतंत्र हैं, लेकिन दूसरों की स्वतंत्रता समाप्त करने का अधिकार किसी को नहीं है।
विजय भाई, सच कहूँ यह पक्ष गांधी का मैंने कभी सोचा ही नहीं था , बचपन से जो पड़ा वोह ही दिमाग पर छाया रहा . एक दफा बहुत देर हुई मैंने आंबेडकर के गांधी के साथ सवाल जवाब पड़े थे जिन में आंबेडकर ने गांधी पर डबल स्टैण्डर्ड का दोष लगाया हुआ था , वोह किस किताब में पड़ा था याद नहीं लेकिन उस में गांधी के गन्दी गालिआं साफ़ करने को लेकर था और कुछ जात पात तोड़क मंडल बनाने को भी कहा गिया था. लेकिन जो गोडसे की चर्चा होने लगी है इस के बारे में सोचने पर मजबूर हुआ हूँ , किओं बटवारे के वक्त जब हिन्दुओं का कत्लेआम हुआ था तो जब हिन्दुओं ने हथिआर उठाए तो गांधी ने मरन वर्त रख दिया था , यह शाएद बंगाल में सोरावार्दी के समय में हुआ था .
भाई साहब, कांग्रेस की सरकारों ने शुरू से ही गाँधी को हीरो बनाकर पेश किया और यही सबको पढ़ाया. उनकी सच्चाई को कभी सामने नहीं आने दिया. लेकिन सच्चाई छुप नहीं सकी और अब अधिकांश लोगों को गाँधी की असलियत मालूम है. गाँधी के लगभग सारे काम देश को नुकसान पहुँचाने वाले थे.
हर आदमी हमारे देश का नागरिक है और रहा भी है इसमें कोई दो राय नहीं है और इसमें भी कोई दो राय नहीं कि गांधीजी कुछ लोगों कि नजर में अच्छे तो कुछ लोगों के नजर में बुरे उसी प्रकार गोडसे जी भी कुछ लोगों के नजर में अच्छे तो कुछ लोगों के नजर में बुरे थे लेकिन हमारे देश में सभी लोगों को समान अधिकार दिया गया है और सबका हक हैं अपने और दूसरों के लिए कुछ करना इसलिए एैसा कोई न करें गोडसे जी के पक्षधर लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंचे गोडसे जी उतने बुरे नहीं थे जितना बना दिया गया था।
——आपका कहना बिल्कुल सही है श्रीमान जी।
बहुत बहुत धन्यवाद, रमेश जी.
आपकी अभिव्यक्ति गोडसे के प्रति अन्याय के विरुद्ध सशक्त आवाज है।
बहुत बहुत आभार, मान्यवर ! देश में सभी को अभिव्यक्ति की स्वतान्ग्त्रता है, पर देशभक्त हिन्दुओं को नहीं.